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मकर संक्रान्ति का त्यौहार

जनवरी महीने की चौदह अथवा पन्द्रह तारीख को सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है ! उसी दिन मकर संक्रान्ति का त्यौहार मनाया जाता है ! धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण काल में प्रवेश करता है ! उत्तरायण के समय दिन लम्बे और रातें छोटी होती हैं ! 21/22 जून से सूर्य दक्षिणायण हो जाता है ! दक्षिणायण को देवताओं का रात्रि काल माना जाता है ! दक्षिणायण में दिन छोटे और रातें लम्बी होने लगती हैं ! शिशिर, बसन्त और ग्रीष्म ऋतुएँ सूर्य की उत्तरायण अवस्था में आती हैं ! वर्षा, शरद और हेमन्त ऋतुएँ सूर्य की दक्षिणायण अवस्था में आती हैं ! शुभ कार्य सूर्य की उत्तरायण अवस्था में किये जाना उत्तम माना जाता है !

प्राचीन काल में 14 दिसम्बर से 13 जनवरी का समय देवताओं के गहन निद्रा काल का समय माना जाता था, इसलिए इन दिनों कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता था ! माना जाता था कि इन दिनों किये गए शुभ कार्यों में देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिलता ! किन्तु समय के साथ मान्यताएँ बदल गयी हैं ! अब इन दिनों भी शादी-विवाह, पूजा-कथा, जप-तप जैसे कार्य, लोग करने लगे हैं ! नई सोच में धार्मिक मान्यताओं तथा परम्पराओं को तोड़ने की प्रथा चल पडी है !

इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी से एक माह तक, माघ मेला लगता है, जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। अन्य कई स्थानों पर भी मकर संक्रान्ति का त्यौहार बड़ी ही धूम -धाम से मनाया जाता है और नदियों के तटवर्ती शहर और गाँव में मकर संक्रान्ति का स्नान ही मेले का रूप धारण कर लेता है !

नेपाल में भी मकर संक्रान्ति का त्यौहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है ! वहाँ मकर संक्रान्ति को माघे-संक्रान्ति, सूर्योत्तरायण कहा जाता है ! थारू समुदाय में मकर संक्रान्ति को माघी कहा जाता है। नेपाल मे मकर संक्रान्ति के दिन वहाँ की सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है।

माना जाता है कि मकर संक्रान्ति के ही शुभ दिन भगीरथ प्रयास से पावन गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था ! कहते हैं इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति के ही दिन पापियों के पाप तारने वाली पावन गंगा राजा भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम के बीच से होते हुए अन्ततः समुद्र में जा मिली थीं ! महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने बाणों की शैय्या पर लेटे हुए प्राण त्यागने के लिए, इसी दिन की प्रतीक्षा की थी ! अन्ततः मकर संक्रान्ति के दिन देह त्याग परलोक गमन किया था !

मकर संक्रान्ति के दिन बहुत से श्रद्धालु घर में खिचड़ी बनाते तथा बनवाते हैं और स्वाद लेकर श्रद्धा के साथ खाते हैं ! खिचड़ी खाने के विषय में एक रोचक कथा यह बताई जाती है कि उज्जैन के राजा भरथरी (भर्तृहरि) के गुरु गोरखनाथ महातपस्वी संत थे ! एक बार मकर संक्रान्ति के अवसर पर गुरु गोरखनाथ ने महाभोज का आयोजन किया ! उस भोज में गरीब-अमीर सभी लोगों को भोजन के रूप में खिचड़ी का प्रसाद दिया गया ! तब एक भक्त शिष्य ने गुरु महाराज से महाभोज में खिचड़ी परोसने का प्रयोजन पूछा तो गुरु गोरखनाथ ने अपने सभी शिष्यों और भक्तों को समझाया कि मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य की दक्षिणायण स्थिति समाप्त होती है और सूर्य उत्तर-पूर्व से प्रकट होते हुए उत्तरायण की स्थिति में प्रवेश करता है ! यह दक्षिणायण से उत्तरायण के मिलन की स्थिति होती है, इसलिए आज के दिन पर भोज्य सामग्रियों को भी एक साथ मिलाकर पकाने व ग्रहण करने का धार्मिक महत्व भी है और यह हमारे शरीर के लिए भी बहुत उपयोगी है ! इसलिए मकर संक्रान्ति पर दाल-चावल की खिचड़ी अथवा दाल-चावल के साथ अपनी मनचाही सब्जियों को मिलाकर बनाई खिचड़ी का सेवन करना अति उत्तम है ! मकर संक्रान्ति के दिन तिल का प्रयोग इस बात का सूचक है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के बाद प्रतिदिन सूर्य का आकार तिल के बराबर बढ़ने लगता है ! मकर संक्रान्ति के दिन गुड़ - तिल और दही का प्रयोग उत्तम माना जाता है !

मकर संक्रान्ति का त्यौहार भारत में लगभग सभी जगह मनाया जाता है ! कुछ स्थानों पर इसके नाम अवश्य भिन्न हैं, किन्तु पूजा-अर्चना में काफी हद तक समानताएं हैं ! कई जगहों पर मकर संक्रान्ति के दिन पतंग उड़ाकर प्रसन्नता प्रकट की जाती है !

मकर संक्रान्ति के दिन गंगा स्नान का भी बहुत महत्व है ! गंगा का पावन जल शरीर की समस्त इन्द्रियों को जागरूक कर देता है ! स्नान करने से कार्य क्षमता बेहतर होती है ! शरीर में पॉजिटिव ऊर्जा का संचार होता है ! प्रत्येक नदी के किनारे बसे गाँव तथा शहर के लोग नदी में स्नान करने को ही उत्तम मानते हैं ! लेकिन अस्वस्थ- बीमार लोगों को ऐसे स्नान से बचना चाहिए !

प्रत्येक प्रान्त में स्थानीय परम्पराओं के अनुसार मकर संक्रान्ति का त्यौहार मनाया जाता है और वहीं के रिवाजों के हिसाब से दान-पुण्य किये जाते हैं ! मकर संक्रान्ति के दिन दान देने का भी विशेष महत्व है ! कहते हैं मकर संक्रान्ति के दिन दिए गए दान का सौगुना फल मिलता है ! दाल-चावल-तिल-गुड़-मूंगफली आदि का दान सबसे उत्तम माना जाता है ! इसके अलावा जरूरतमन्दों को उनके उपयोग की वस्तु दान देना श्रेष्ठ होता है ! गरीबों को तन ढकने के लिए कपडे, सर्दी से बचने के लिए कम्बल का दान दिया जाना बेहद फलदायी माना जाता है ! स्वास्थ्य लाभ के लिए घी का दान किया जाता है !