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नवरात्रि

नवरात्रि का त्यौहार - माँ दुर्गा की पूजा-उपासना का पर्व है !

“हिन्दू समाज” ही एकमात्र ऐसा समाज है, जिस में अनेक देवता हैं ! बहुत सी देवियाँ हैं ! और एक हिन्दू व्यक्ति सबका आदर करता है ! सबकी पूजा करता है ! सबके प्रति श्रद्धा की भावना रखता है !
सामाजिक परिवेश तथा पाश्चात्य सभ्यता के अन्धानुकरण के कारण पैदा होने वाले कुछ अपवादों तथा अपराधी एवं विकृत मनोवृत्ति के लोगों को छोड़ दें तो आज भी एक आम हिन्दू नागरिक सभी बड़ों के प्रति श्रद्धा-सम्मान के भाव रखता है ! हिन्दू व्यक्ति छोटों के प्रति भी गहरा अनुराग-प्यार रखता है, क्योंकि ये संस्कार हर हिन्दू को विरासत में मिले होते हैं !
हिन्दू परिवार में माता-पिता के अतिरिक्त चाचा-चाची, ताऊ-ताई. बुआ-फूफा, मामा-मामी को भी स्नेह और पूरा सम्मान मिलता है ! दादा-दादी, नाना-नानी को पूजनीय समझा जाता है ! हिन्दू तथा गैरहिन्दू - बहुत से लोग हिन्दुओं में देवी-देवताओं की अधिकता को मज़ाक का विषय बनाते हैं ! उन्हें यह समझना चाहिए कि जिस तरह संयुक्त परिवार में रहने वाले एक आम हिन्दू का परिवार बृहद होता है, उसी प्रकार हमारे देवी-देवताओं का एक बृहद परिवार है, जो हमें एक-दूसरे का सम्मान करना सिखाता है ! हमें एक होकर रहना सिखाता है !

देवी-देवताओं में माँ दुर्गा का अवतार - नारी शक्ति का प्रतीक है ! माँ दुर्गा के नौ अवतार पुरुषों पर नारी के वर्चस्व की गाथा हैं ! जब-जब पुरुष के राक्षसी रूप ने आतंक मचाया नारी शक्ति ने अवतार लेकर राक्षस का संहार किया है !

पुरुषों को जन्म देने वाली भी नारी ही है ! माँ दुर्गा के नौ रूप - प्रत्येक मनुष्य को नारी का सम्मान करने की शिक्षा देते हैं ! जो लोग नारी पर किसी भी प्रकार का जुल्म करते है, अत्याचार करते हैं, उन्हें यह भी ज्ञात होना चाहिए कि नारी माँ है ! नारी दुर्गा है ! नारी लक्ष्मी है ! नारी सरस्वती है ! नारी नन्ही बच्ची हो, युवा कन्या हो, अधेड़ गृहिणी हो अथवा बूढ़ी दादी अम्मा - हर एक रूप में पूजनीय है ! नारी जननी है ! जगतजननी है ! हम नवरात्रि का त्यौहार वर्ष में दो-दो बार मनाते हैं, किन्तु वर्ष के तीन सौ पैंसठ दिनों में हर पल नारी का सम्मान करना भी हमें सीखना चाहिए !

नवरात्रि में हम माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं ! कुछ लोग पूजा का समापन अष्टमी के दिन करते हैं ! कुछ लोगों में नवमी के दिन पूजा का समापन होता है ! समापन वाले दिन पूजा करने वाला परिवार नौ या उससे ज्यादा कन्याओं को भोजन कराता है ! भेंट देता है ! बहुत से हिन्दू परिवारों में अल्प आयु कन्याओं के पैर भी पूजे जाते हैं !

प्रथम अवतार शैल पुत्री

नवरात्रों का पहला दिन नवदुर्गा पूजन का पहला दिन होता है ! पहले दिन माँ दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है ! शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री थीं ! कहा जाता है कि एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया ! यज्ञ में उसने सभी देवी - देवताओं को बुलाया, किन्तु भगवान् शिव और उनकी अर्धांगिनी सती को नहीं बुलाया ! सती दक्ष प्रजापति की ही पुत्री थीं ! सती ने सोचा कि पिता उसे यज्ञ के भव्य आयोजन की व्यस्तता के कारण बुलाना भूल गए होंगे, किन्तु पुत्री होने के नाते मेरा धर्म है कि मैं पिता के घर पहुँच उनके कार्यों में सहयोग करूँ ! सती ने भगवान् शिव से पिता के घर जाने की अनुमति माँगी तो शिव जी ने उन्हें समझाया - बिना बुलाये पिता के घर जाना भी उचित नहीं ! इससे सम्मान नष्ट होता है, किन्तु सती ने कहा कि पिता का घर तो मेरा अपना घर है ! वहां जाने के लिए मुझे किसी निमन्त्रण की जरूरत नहीं है !

सती की जिद देख भगवान् शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी ! किन्तु पिता के घर पहुँचकर सती ने स्वयं को उपेक्षित पाया और सभी को भगवान् शिव के प्रति कटु एवं अनादर भरे शब्द बोलता पाया ! घोर अपमान से क्रुद्ध हो सती ने यज्ञ की अग्नि में कूद अपने तपोबल से स्वयं को भस्म कर लिया ! सती ने ही अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री के रूप में विख्यात हुईं ! उन्हें पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण हिमावती नाम से भी जाना जाता है ! चूँकि सती ही सर्वप्रथम भगवान शिव की अर्धांगिनी बनी और उन्हीं का पुनर्जन्म शैलपुत्री के रूप में हुआ, इसलिए उन्हें ही माँ दुर्गा का प्रथम अवतार माना जाता है ! माँ शैलपुत्री को बैल पर सवार दिखाया जाता है ! उनके दायें हाथ में त्रिशूल तथा बांये हाथ में कमल का फूल सुशोभित रहता है !

शैलपुत्री की पूजा करने से भक्तों को मनचाहा फल प्राप्त होता है ! माता के पूजा करते हुए इस श्लोक का जाप करते हुए उनकी स्तुति करें !

या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!

Yaa Devi SarvBhuteshu Maa Shailputree Rupen Sansthita !
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah !!

माँ ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दूसरे दिन माँ दुर्गा के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है ! सच्चे मन से माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने वाला भक्त सभी लोगों में लोकप्रिय होता है और समाज में श्रेष्ठ सम्मान प्राप्त करता है ! माँ ब्रह्मचारिणी के दायें हाथ में जप की माला तथा बांये हाथ में कमण्डल रहता है।
इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है, जिनका विवाह सम्बन्ध तय हो गया हो, किन्तु विवाह होने में अभी विलम्ब हो ! माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हुए इस श्लोक का जाप करें –

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!

Yaa Devi SarvBhuteshu Maa Brahmchaarinee Rupen Sansthita !
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah !!

माँ चन्द्रघन्टा

नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चन्द्रघन्टा की पूजा की जाती है ! माँ का यह स्वरुप बेहद अद्भुत एवं आकर्षक है ! माँ चन्द्रघन्टा अलौकिक क्षमताओं वाली, अद्भुत शक्तियां प्रदान करने वाली, शक्ति का प्रतीक हैं ! माँ चन्द्रघंटा के शरीर स्वर्ण की तरह चमकीला है ! उनके माथे पर घंटे का आधा आकार सुशोभित होता है ! माँ चन्द्रघन्टा दस भुजाओं वाली प्रबल पराक्रमी देवी हैं, जो सिंह पर सवार हो, हमेशा युद्ध के लिए तत्पर दिखाई देती हैं ! इनकी पूजा मनुष्य को साहस और बल प्रदान करती है ! नवरात्रि के तीसरे दिन सांवले रंग की विवाहित महिला की पूजा करें और उसका सम्मान करते हुए उपहार दें ! माँ चन्द्रघन्टा की पूजा करते हुए इस श्लोक का जाप करें –

या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघन्टा रूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!

Yaa Devi SarvBhuteshu Maa Chandraghantaa Rupen Sansthita !
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah !!

माँ कूष्माण्डा देवी

नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा देवी की पूजा की जाती है ! माँ कूष्माण्डा देवी दुर्गा शक्ति के सबसे प्रबल रूपों में से एक हैं ! कहा जाता है - जब सृष्टि नहीं थी ! यह अन्तरिक्ष-ब्रह्माण्ड कुछ भी नहीं था, तब माँ कूष्माण्डा देवी ने ही मन्द हँसी से सृष्टि की रचना की थी ! संस्कृत भाषा में कुष्माण्ड, कुम्हड़े अर्थात कद्दू (Pumpkin ) को कहा जाता है ! माँ कूष्माण्डा पर भक्तजन कद्दू चढ़ाते हैं या पेठे का प्रसाद बाँटते हैं ! माँ कूष्माण्डा देवी आदिशक्ति हैं और जगतजननी माँ दुर्गा का चमत्कारिक स्वरूप हैं ! इनका निवास सूर्य के प्रभामण्डल के भीतर की भूमि पर है !

सूर्य के ओजस्वी तेज को सहन करने शक्ति माँ कूष्माण्डा देवी में ही है ! इनका शरीर इतना तेजोमय है कि माँ कूष्माण्डा देवी के प्रकट होते ही घने अन्धकार में भी सूर्य से हज़ारों गुना अधिक प्रकाश हर दिशा में फ़ैल जाता है !

माँ कूष्माण्डा देवी अष्टभुजाओं वाली हैं ! माँ कूष्माण्डा देवी के सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृतकलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। माँ कूष्माण्डा की पूजा से रोग-दोष नष्ट हो जाते हैं और यश-बल-स्वास्थ्य तथा लम्बी आयु प्राप्त होती है ! माँ कूष्माण्डा को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि के चौथे दिन इस मन्त्र का जाप करें –

या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!

Yaa Devi SarvBhuteshu Maa Shailputree Rupen Sansthita !
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah !!

स्कन्दमाता

नवरात्रि के पाँचवे दिन स्कन्दमाता की पूजा की जाती है ! स्कन्द श्रीगणेश के भ्राता कार्तिकेय को भी कहा जाता है ! देव-असुर संग्राम में कार्तिकेय सेनापति बने थे ! उन्हें चिरकुमार माना जाता है ! कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण ही माँ दुर्गा का यह स्वरूप स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है ! स्कन्दमाता चार भुजाओं वाली हैं ! उनकी ऊपर उठी दायीं और बायीं भुजाओं में कमल का फूल सुशोभित है ! बायीं तरफ की नीचे वाली भुजा में हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में उठा हुआ है तथा दायीं भुजा से बालक षडानन (कार्तिकेय- स्कन्द) को गोद में सम्भाले हैं ! स्कन्दमाता कमल के फूल पर विराजमान रहती हैं ! उनकी सवारी सिंह है !

स्कन्दमाता कमल के फूल पर विराजमान रहती हैं ! उनकी सवारी सिंह है ! कमल के आसान पर विराजमान होने के कारण स्कन्दमाता को पद्मासना देवी भी कहा जाता है ! जो भक्त पद्मासन लगाकर स्कन्दमाता की भक्ति करता है, स्कन्दमाता उसकी सभी इच्छाओं को पूरी करती हैं ! जो भक्त मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से भक्ति करते हैं, उन्हें पद्मासन लगाकर इस श्लोक का जाप करना चाहिए –

या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!

Yaa Devi SarvBhuteshu Maa Skandmaataa Rupen Sansthita !
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah !!

कात्यायनी माता

माता के नौ रूपों में से छठा रूप है कात्यायनी माता का ! नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है ! कहा जाता है - कत नाम के महर्षि का एक पुत्र था कात्य ! उसी कात्य के पुत्र हुए महर्षि कात्यायन ! महर्षि कात्यायन भगवती माँ ( माँ दुर्गा का ही एक रूप ) को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया ! माता ने प्रसन्न होकर दर्शन दिये तो महर्षि कात्यायन ने याचना की कि हे माँ आप मेरी पुत्री के रूप में अवतरित हों तो मेरा जन्म सफल हो जाएगा !

माँ ने भक्त कात्यायन की यह प्रार्थना स्वीकार कर ली ! उन्हीं दिनों दानव महिषासुर के आतंक से पृथ्वी पर लोग त्राहि-त्राहि करने लगे थे ! सन्त जन देवी-देवताओं से प्रार्थना करने लगे कि दुष्ट महिषासुर से उनकी रक्षा की जाये !

तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों ने अपने-अपने तेज को एक देवी के रूप में प्रकट किया ! वह देवी महर्षि कात्यायन के आश्रम में अवतरित हुईं ! देवी ने आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अवतरित होकर महर्षि कात्यायन को पिता का सम्मान दिया ! महर्षि कात्यायन की पुत्री की रूप में अवतरित होने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ा ! महर्षि कात्यायन ने यह जानकर कि पृथ्वी को अत्याचारी दुष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए, देवी भगवती ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव के तेज सहित, उनकी पुत्री रूप में जन्मी हैं, देवी की पूजा की कामना की और आश्विन शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन अनवरत देवी की पूजा की ! दशमी के दिन देवी ने महिषासुर का वध करके पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया ! इसीलिये दशमी का दिन विजयदशमी कहलाया ! जो भक्त किसी मनचाही वास्तु पाने के लिये माँ कात्यायनी की पूजा करें, उन्हें इस मन्त्र का जाप करना चाहिए !

चन्द्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना ! कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि !!

Chandra haasojj valkaraa shaardoo lavar vaahanaa !
Kaatyaayanee Shubham Dadyaa Devi Daanav Ghaatinee !!
माँ कात्यायनी की पूजा से हर तरह के सुख की प्राप्ति होती है ! जिन लड़कियों के विवाह में किसी कारणवश बाधा आ रही हो, उन्हें माँ कात्यायनी का स्मरण कर इक्कीस दिनों तक इस मन्त्र का जाप करना चाहिए !
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नन्दगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम: !!

Om Kaatyaayanee Mahaamaaye Mahaayoginyadheeshvari !
Nandgopsutam devi patim me kurute namah !!
यह मन्त्र सुबह स्नान करने के बाद, लकड़ी के चौड़े पटरे पर पालथी मारकर बैठ कर, प्रतिदिन एक ही निश्चित समय पर, आँखें मूँदकर, माँ कात्यायनी का ध्यान करके, ग्यारह बार पढ़ना चाहिए ! यदि मन्त्र पहले दिन सुबह सात बजे पढ़ा गया हो तो हर रोज सात बजे ही पढ़ा जाना चाहिए ! मन्त्र कंठस्थ होना चाहिए ! आँखें बन्द करके मन्त्र का जाप करना है, इसलिए अच्छी तरह याद तो होना ही चाहिए ! इक्कीसवें दिन किसी पात्र में अग्नि प्रज्वलित कर ग्यारह बार हवन सामग्री और घी की आहुति देनी चाहिए ! आहुति देते हुए मन्त्र का पाठ अवश्य करें और अन्त में "स्वाहा" बोलें !
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नन्दगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम: स्वाहा !!

Om Kaatyaayanee Mahaamaaye Mahaayoginyadheeshvari !
Nandgopsutam devi patim me kurute namah Swaahaa !!

माँ कात्यायनी का रंग अत्यन्त चमकीला और तेजस्वी है ! वह चारभुजाओं वाली शक्तिरूपा हैं ! माँ का ऊपर की ओर का दायां हाथ अभयदान देने की मुद्रा में उठा हुआ है और नीचे वाला हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में है ! बायीं तरफ के ऊपरी हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है ! माँ कात्यायनी को शक्तिरूपा माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा के श्लोक में उन्हें शक्ति का संबोधन दिया जाता है ! माँ कात्यायनी की भक्ति करने के लिए इस मन्त्र का जाप करें !

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!

Yaa Devi SarvBhuteshu Shakti Rupen Sansthita !
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah !!

माँ कालरात्रि

नवरात्रि का सातवाँ दिन माँ कालरात्रि की उपासना-अर्चना का दिन है ! माँ कालरात्रि की पूजा-साधना करने से सभी प्रकार के भय दूर होते हैं ! माँ कालरात्रि का स्वरूप बड़ा भयानक है ! उनकी जटाएँ बिखरी हुई होती है ! यह तीन नेत्रों वाली देवी हैं ! इनकी आँखें लाल और गोलाकार होती हैं और नाक से लपटें निकलती रहती हैं ! इनका वाहन गधा है ! यह चार भुजाओं वाली देवी हैं ! यह शीघ्र प्रसन्न होती हैं तथा शुभ फल देती हैं ! इनके ऊपर का दायाँ हाथ वर देने वाली मुद्रा में उठा रहता है ! नीचे वाला दायाँ हाथ अभयदान देने वाली मुद्रा में है ! ऊपर वाले बायें हाथ में एक काँटा है तथा नीचे वाले बायें हाथ में एक कटार है ! दैत्य-दानव-राक्षस-असुर-भूत-प्रेत सभी तरह के दुष्टों का काल हैं माँ कालरात्रि ! भक्तों को इनके स्वरूप से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है ! यह अपने सभी भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होती हैं और उनकी समस्त बाधाओं को दूर कर शुभ फल देती हैं ! यह सभी पापों से मुक्ति दिलाती हैं और क्षमा एवं शुभ फल प्रदान करती हैं ! माँ कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिये इस मन्त्र का जाप करें !

या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!

Yaa Devi SarvBhuteshu Maa Kaalraatri Rupen Sansthita !
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah !!

महागौरी माँ

नवरात्रि के आठवें दिन माँ दुर्गा के सौम्य रूप महागौरी की पूजा के जाती है ! महागौरी माँ गौर वर्ण की हैं !ववाह सदैव श्वेत परिधान में सुशोभित रहती हैं ! माँ गौरी की पूजा से पूर्व में संचित समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और भविष्य में कोई पाप नहीं होता ! सदा सत्कर्म करने के लिये तथा मन में कुविचार उत्पन्न होने से रोकने के लिये महागौरी माँ की पूजा करनी चाहियॆ ! इनका वाहन बैल है ! यह चार भुजाओं वाली हैं ! इनका ऊपर का दायाँ हाथ अभयदान देने की मुद्रा में है और नीचे के दायें हाथ में त्रिशूल सुशोभित है ! ऊपर वाले बायें हाथ में डमरू है तथा नीचे वाला बायाँ हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में है !

महागौरी के बारे में प्रसिद्ध है कि गौरी माँ ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की! अन्ततः महादेव शिव प्रसन्न हुए और नन्दी बैल पर सवार महादेव शिव ने गौरी माँ को दर्शन दिए ! बरसों की तपस्या से माँ की देह पर मिट्टी जम गयी थी और तेज धूप के ताप से सारा शरीर काला पड़ गया था ! शिव जी ने तपस्विनी का चेहरा देखने के लिए अपनी जटाओं से गंगा की धार का रूख गौरी माँ पर कर दिया ! गंगा जल पड़ते ही माँ का गौर वर्ण अद्भुत तेज से चमक उठा ! तभी से माँ का नाम महागौरी पड़ गया !

भगवान शिव ने वहीं गौरी माँ को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया और महागौरी माँ अपने समस्त तेज सहित महादेव शिव के वाम अंग में समा गयीं ! चूँकि उस समय महादेव शिव नन्दी बैल पर सवार थे, अतः माँ महागौरी का वाहन बैल हुआ ! किन्तु माँ महागौरी का वाहन किन्हीं कथाओं में सिंह भी बताया जाता है ! इस सन्दर्भ में एक विशेष कथा कही जाती है ! वह इस प्रकार है -

जब माँ महागौरी घोर तपस्या में लीन थीं, तब अचानक ही एक अत्यंत भूखा सिंह उसी ओर आ निकला ! सिंह बहुत भूखा था ! माँ महागौरी के रूप में उसे आसान भोजन नज़र आया तो वह माँ की तरफ बढ़ा, किन्तु माँ के निकट पहुँचने से पहले ही अचानक उसका सिर झुक गया और वह वहीं बैठ गया !
जब तक माँ महागौरी तपस्या में लीन रहीं, वह सिंह भी भूखा प्यासा वहीं बैठा रहा और उस तरफ यदि कोई जानवर आता तो वह उसे भगा देता !
भगवान शिव के प्रकट होने तक वह सिंह बेहद कमजोर एवं अधमरा-सा हो गया ! महादेव शिव के दर्शन के बाद उस सिंह को वहाँ देख माँ महागौरी चकित हो उठीं और उन्होंने भगवान शिव से पूछा - "प्रभु ! यह सिंह यहां क्या कर रहा है ? और यह इतना दुर्बल क्यों है ?"
गौरीनाथ शिव मुस्कुराये और बोले - "देवी, यह यहाँ आया तो तुम्हें खाने के लिए था, किन्तु इसे तुम में अपनी माँ का स्वरूप नज़र आया तो यह यहीं बैठ कर तुम्हारी रक्षा करने लगा !"

माँ महागौरी को उस कृशकाय सिंह पर बड़ी दया आई ! उन्होंने निकट जा सिंह पर हाथ फेरा और उस पर सवार हो गयीं ! माँ के प्रबल तेज और शक्ति से सिंह का कायापलट हो गया और वह स्वस्थ और शक्तिशाली हो गया !
इसीलिये महागौरी माँ का एक वाहन सिंह भी दिखाया जाता है ! और वृषभ अर्थात बैल को भी माँ महागौरी का वाहन माना जाता है ! इसीलिये महागौरी माँ का एक वाहन सिंह भी दिखाया जाता है ! और वृषभ अर्थात बैल को भी माँ महागौरी का वाहन माना जाता है ! महागौरी माँ की आराधना में ऋषि-मुनि-साधक-देवी-देवता कहते हैं -

“सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..!”

Sarvmangal Maangalye Shive Sarvaarth Saadhike, Sharanye Trayambake Gauri Naaraayani Namostute.
महागौरी का स्मरण, पूजन करने वालों को अष्टमी के दिन माता पर चुनरी चढ़ा कर पूजा करनी चाहिए ! माँ महागौरी अति दयालु हैं ! वह अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी करती हैं ! माँ महागौरी को प्रसन्न करने के लिए इस मन्त्र का जाप करें -

या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!

Yaa Devi SarvBhuteshu Maa Mahaagauree Rupen Sansthita !
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah !!

सिद्धिदात्री माँ

नवरात्रि के नवमे दिन माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री अवतार की पूजा की जाती है ! मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां होती हैं। सिद्धिदात्री माता की पूजा से समस्त सिध्दियां प्राप्त होती हैं ! माँ सिद्धिदात्री समस्त सुखों को प्रदान करती हैं तथा साधक को मोह-माया से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करती हैं ! इनकी आराधना करने वाले व्यसनों और वासनाओं से मुक्त हो जाते हैं !

माँ सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है। ये कमल के फूल पर आसीन होती हैं। इनकी दायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाली दायीं भुजा में गदा और बांयी तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का फूल है। इन्हीं की कृपा और चमत्कार से भगवान शिव का आधा शरीर नारी का हुआ था और महादेव शिव अर्द्धनारीश्वर के रूप में विख्यात हुए !

माँ सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए निम्न मन्त्र का जाप करें –

या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

Yaa Devi SarvBhuteshu Maa Siddhidaatree Rupen Sansthita !
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah !!

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