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अहोई अष्टमी का व्रत

बहुत पुरानी बात है ! एक नगर में एक साहूकार, अपनी पत्नी और सात बेटों और बहुओं के साथ सुखपूर्वक रहता था ! साहूकार की एक बेटी भी थी, जिसका ब्याह हो चुका था !

दीपावली के अवसर पर साहूकार की बेटी भी मायके आई हुई थी ! तब साहूकार की सातों बहुओं ने दीपावली पूजन से पहले घर को लीपने के लिए जंगल के पास के तालाब के पास से अच्छी मिट्टी लाने का निश्चय किया ! सातों बहुएँ मिट्टी लाने के लिए निकलीं तो साहूकार की बेटी भी भाभियों का हाथ बँटाने के लिए साथ हो ली !
साहूकार की बेटी जिस स्थान से मिट्टी खोद रही थी ! वहीं एक साही अपने सात बच्चों के साथ रहती थी ! साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से साही का एक बच्चा मर गया ! साही क्रुद्ध हो उठी और अपने बदन से एक काँटा निकाल कर बोली - "तूने मेरे बच्चे को मारा है ! मैं तेरी कोख बाँधूँगी और तेरे बच्चा नहीं होने दूँगी !"
साहूकार की बेटी हाथ जोड़ कर रोने लगी - "मुझे माफ़ कर दो ! मुझसे भूल हो गयी ! मैंने जान-बूझकर कुछ नहीं किया !"
साही बोली - "जो तेरी जगह कोई और अपनी कोख बँधवा ले तो मैं तुझे छोड़ दूँगी !"
साहूकार की बेटी ने बड़ी भाभी से प्रार्थना की कि भाभी आप अपनी कोख बँधवा लो !
तो बड़ी भाभी बोली -"ना ना ! मैं तो अपनी कोख ना बँधवाऊँ !"
साहूकार की बेटी ने दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवी, छठी भाभी से भी प्रार्थना की ! किन्तु सभी ने अपनी कोख बँधवाने से इन्कार कर दिया !
तब साहूकार की बेटी ने सबसे छोटी सातवीं भाभी से भी यही प्रार्थना की ! छोटी भाभी को ननद पर दया आ गयी ! वह अपनी कोख बँधवाने के लिए मान गयी !
साही ने काँटा फेंक कर सातवीं सबसे छोटी भाभी की कोख बाँध दी ! फिर अपने बच्चों के साथ वहाँ से चली गयी !
(कहते हैं - पुराने जमाने में तांत्रिक साही के बदन का काँटा तन्त्र-मन्त्र के लिए भी इस्तेमाल करते थे !)
कोख बँधवाने के बाद सातवीं सबसे छोटी भाभी ने जब भी किसी पुत्र को जन्म दिया, वह पैदा होने के सातवें दिन ही मर गया ! एक-एक कर जब उसके कई पुत्र पैदा होने के सातवें दिन मर गये तो दुखी छोटी बहू एक विद्वान पण्डित के पास गयी और बोली - "मैंने अपनी ननद की कोख बचाने के लिए साही माता से अपनी कोख बँधवा ली, इसलिए मेरे बेटा जन्म लेते ही सातवें दिन मर जाता है ! मुझे कोई उपाय बताइये, जिससे मैं अपने पुत्रों की रक्षा कर सकूं !"

पण्डित जी ने छोटी बहू से कहा कि वह सुरही गाय की खूब सेवा करे ! सुरही गाय साही माता की सहेली है ! साही माता कहाँ मिलेगी, उसे अवश्य पता होगा ! यदि सुरही गाय प्रसन्न हो गयी तो साही माता से तेरी कोख खुलवा देगी ! फिर तेरे बच्चे खूब जियेंगे !"
छोटी बहू सुरही गाय की खूब सेवा करने लगी ! उसके पास सफाई करने लगी ! चारा खिलाने लगी ! उसे नहलाने- धुलाने भी लगी ! सुरही गाय का हर काम छोटी बहू करने लगी !
सुरही गाय छोटी बहू की सेवा से अति प्रसन्न हुई और एक दिन वह छोटी बहू को साथ लेकर साही माता से मिलवाने के लिए चली ! रास्ते में थक कर दोनों आराम करने लगे ! वहाँ छोटी बहू की नज़र एक गरुड़ पक्षी के बच्चे पर पड़ी, जिसे एक साँप डंसने जा रहा था ! छोटी बहू ने साँप को मार कर गरुड़ बच्चे की रक्षा की ! तभी गरुड़ माता वहाँ आ गयी और छोटी बहू से बोली -"तुमने मेरे बच्चे की रक्षा की है ! बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकती हूँ !"
तब छोटी बहू ने अपनी आपबीती उसे सुनाई और बोली - आप हमें साही माता के पास पहुँचा दो !"
गरुड़ माता ने सुरही गाय से साही माता के बारे में जान सुरही गाय व छोटी बहू दोनों को साही माता के पास पहुँचा दिया ! साही माता सुरही गाय और छोटी बहू को वहाँ देख कर बोली - "अरे बहन, तुम यहां कैसे ? खैर आ ही गयी हो तो मेरे शरीर से जुएं निकाल दो !"

छोटी बहू ने एक सलाई लेकर साही माता के शरीर से सारी जुएं निकाल दीं तो साही माता खुश होकर बोली- " जैसे तूने मुझे आराम पहुँचाया, वैसे ही तेरे सात बेटे और सात बहुएँ तुझे बड़ा आराम देंगे !"
छोटी बहू बोली -"आराम तो तब देंगे न, जब वो जियेंगे ! तूने तो मेरी कोख बाँध दी है ! मेरे बेटे तो जीते ही नहीं ! पैदा होते ही सातवें दिन मर जाते हैं ! अब आशीर्वाद दिया है तो मेरी कोख भी खोल ! तूने मेरी कोख बांधी है और तू ही उसे खोल सकती है !"
साही माता ने कहा - "घर जा ! और कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन अहोई माता का व्रत कर ! तेरा भला होगा !"
उसके बाद छोटी बहू खुशी-खुशी अपने घर लौटी ! कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन उसने अहोई माता का व्रत किया ! फिर जैसे साही माता ने बताया, वैसे ही पूजा की ! भविष्य में वह सात बेटों की मान बनी और उनके बड़े होने पर सात बहुओं और भरे-पूरे परिवार के साथ सुख से रहने लगी !