एक बुढ़िया थी। वह बहुत ही ग़रीब और अन्धी थीं। उसके एक बेटा और बहू थे।
वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी।
एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले-
'बुढ़िया माँ ! मैं तेरी पूजा से बहुत खुश हूँ ! तू जो चाहे, सो माँग ले !'
बुढ़िया बोली - 'मुझसे तो माँगना नहीं आता। कैसे और क्या माँगूँ ?'
तब गणेशजी बोले - 'अपने बहू-बेटे से पूछकर माँग ले।'
तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- 'गणेशजी कहते हैं 'तू कुछ माँग ले' बता मैं क्या माँगूँ ?'
पुत्र ने कहा- ' माँ ! हमलोग बहुत गरीब हैं ! तू धन माँग ले।'
बहू से पूछा तो बहू ने कहा- ' माँ, धन तो आनी-जानी माया है, तू नाती माँग ले।'
तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं। अत: उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा, तो उन्होंने कहा- 'बुढ़िया! तू तो थोड़े दिन जीएगी, क्यों तू धन माँगे और क्यों नाती माँगे ! तू तो अपनी आँखों की रोशनी माँग ले, जिससे तेरी ज़िन्दगी आराम से कट जाए !'
आखिरकार बुढ़िया ने खुद ही काफी सोच विचार किया और श्रीगणेश जी से वर माँगते हुए विनम्र भाव से बोली- 'हे प्रभु! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अन्त में मोक्ष दें।'
यह सुनकर तब गणेशजी मुस्कुराते हुए बोले- 'बुढ़िया माँ ! तूने तो हमें ठग दिया। फिर भी जो तूने माँगा है, वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा।'
और यह कहकर गणेशजी अन्तर्ध्यान हो गए।
गणेश जी की कृपा से बुढ़िया माँ ने जो कुछ मांगा, वह सब कुछ उसे मिल गया।
हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना !