उत्तर भारत के पंजाबी बहुल क्षेत्रों में लोहड़ी का त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है ! विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में तो लोहड़ी की शान ही निराली होती है ! यह जोश, उल्लास और खुशियों का त्यौहार है ! लोहड़ी का त्यौहार - मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले की रात को मनाया जाता है ! अधिकांशतः यह त्यौहार 13 जनवरी की रात्रि को मनाया जाता है ! लोहड़ी से सम्बन्धित कई कथाएँ हैं, जिनमे से एक यह है कि प्रजापति दक्ष ने अपने यहाँ यज्ञ में अपने दामाद भगवान शिव और पुत्री सती को नहीं बुलाया था, किन्तु सती अपने पिता से अथाह प्रेम के कारण बिना बुलाये ही मायके पहुँच गयीं तो दक्ष प्रजापति ने पुत्री के सामने ही अपने दामाद शिव के लिए अपशब्द कहे और उनके नाम से आहुति भी नहीं दी तो सती बेहद दुखी होकर यज्ञ की अग्नि में कूद गयीं और उन्होंने पति का स्मरण कर अपने प्राणों की आहुति दे, प्राण त्याग दिए ! लोहड़ी की रात सती माता की याद में उन्हें आहुति देने के लिए ही अग्नि जलाई जाती है ! इसीलिये लोहड़ी के पर्व पर सभी विवाहित पुत्रियों के लिए उनके मायके से मूंगफली, रेवड़ी, फल तथा वस्त्र आदि उपहारस्वरुप भेजे जाते हैं ! माना जाता है - जो गलती दक्ष प्रजापति ने की थी, वह फिर किसी माता-पिता से न हो तथा पुत्रियों का मान-सम्मान सदैव कायम रहे - इसी भावना के साथ यह त्यौहार मनाया जाता है ! पुत्रियों का मान-सम्मान दोनों घरों में बना रहे - मायके में भी और ससुराल में भी - इसकी जिम्मेदारी लड़की के माता-पिता और भाइयों पर भी होती है ! यह एहसास लोहड़ी का पवित्र त्यौहार सभी को कराता है ! लोहड़ी आने से बीस-पच्चीस दिन पहले से ही बालक-बालिकाएँ तथा किशोर आयु के बच्चे एक टोली के रूप में एकत्रित होकर घर-घर से माँग-माँगकर लकड़ीऔर उपले इकट्ठे करते है और उन्हें किसी चौड़े-खुले स्थान या चौक जैसी जगह पर जमा किया जाता है ! लोहड़ी की रात निश्चित समय पर मोहल्ले अथवा गाँव के लोग एकत्रित सामग्री के चारों तरफ इकट्ठे हो जाते हैं और लकड़ियों तथा उपले के ढेर में आग लगाई जाती है ! सभी एकत्रित श्रद्धालु जलती हुई अग्नि के चारों तरफ नाचते-गाते-बजाते परिक्रमा करते हैं तथा अग्नि में मूंगफली, रेवड़ी और मकई के दानों की आहुति देते जाते हैं ! घर लौटते समय लोग जली हुई लकड़ी के कुछ कोयले शुभ मानकर घर ले जाते हैं ! जिन घरों में लड़के का ब्याह हुआ हो और ब्याह के बाद पहली लोहड़ी हो तथा जिस नवविवाहित दम्पति को पहली सन्तान हुई हो, वे लोग लोहड़ी में दिल खोल कर खर्च करते हैं तथा बेहद धूम-धाम से लोहड़ी मनाते हैं ! वे अपने परिचितों, मित्रों तथा मोहल्ले के लोगों में मूंगफली तथा रेवड़ी और मकई के दानों का प्रसाद भी बाँटते हैं ! लोहड़ी से जुड़े अधिकांश गानों में दुल्ला-भट्टी का जिक्र अवश्य आता है ! दुल्ला भट्टी पंजाब का वीर नायक था ! उसका जन्म 1547 में पंजाब के संदल बार क्षेत्र के बद्दर क्षेत्र के गांव चूचक में में हुआ था ! वह विशाल क्षेत्र अब पाकिस्तानी पंजाब में है और वहाँ बहुत से शहर और कस्बे बसे हुए हैं ! दुल्ला भट्टी का जन्म जहाँ हुआ था, वह क्षेत्र आजकल हाफ़िज़ाबाद कहलाता है ! उस समय के मुगल बादशाह हुमायूं को लगान न देने के कारण दुल्ले के पिता व दादा बिजली खान उर्फ सांदल भट्टी के सिर धड़ से अलग कर दिए गए थे और उनकी लाशें लाहौर के शाही किले के पिछले दरवाजे पर लटका दी गयीं ! दुल्ला भट्टी को जब यह मालूम हुआ तो उसने अपनी एक बहादुर फौज तैयार की ! उसने मुग़ल दरबार के धनी-मानी लोगों को लूटना शुरू कर दिया ! धन-सम्पत्ति और हथियार लूटकर, उसने अपनी सेना के बल पर मुग़लों की नाक में दम कर दिया ! उन दिनों संदल बार में एक जगह लड़कियों को बलपूर्वक गुलामी के लिए बेचने के लिए बाजार लगता था ! उस बाजार में अपहरण करके लाई गयी जवान लड़कियों तथा गरीब माँ-बाप को धन का लालच देकर खरीद कर लाई लड़कियों को उनकी मर्ज़ी के खिलाफ जबरदस्ती धनवान लोगों को बेचा जाता था ! दुल्ला भट्टी योजना बनाकर उन गुलाम मंडियों में हमला करता और बेचने के लिए लाई गयी लड़कियों को छुड़ा ले जाता ! फिर उनकी शादी उन्हीं की उम्र के हिन्दू नौजवानों से करवा देता ! अपने सद्कार्यों के कारण दुल्ला भट्टी उन दिनों गरीबों और दुखियों का मसीहा बन गया था और अत्याचारी स्वभाव के धनी लोग उससे घबराने लगे थे ! लोहड़ी के त्यौहार के विषय में और भी किवदन्तियाँ हैं ! यह भी कहा जाता है कि लोहड़ी का त्यौहार सर्दी के आगमन के बाद पूरे जोरों पर होने का प्रतीक है ! आग जलाकर उसके चारों तरफ नाचते-गाते ढोल बजाकर खुशियाँ मनाने का मतलब है कि ऐ सर्दी ! तू कितनी भी ठण्ड फैला ले - हम लोहड़ी के आनन्द से तुझे भगाकर रहेंगे ! आजकल शहरों में लोग अक्सर अपने-अपने घरों के आगे भी कुछ लकड़ियाँ जलाकर लोहड़ी मनाने लगे हैं ! पर लोहड़ी जैसे त्यौहार का असली मज़ा मिल-जुलकर एक साथ हँसते-गाते-झूमते-नाचते हुए मनाने में ही है !