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भैया दूज

हिन्दू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसमे हर रिश्ते का अपना अलग ही महत्त्व है ! और नारी का सम्मान हो, उसे किसी से कम न समझा जाए, यही बताने के लिए कई ऐसे त्यौहार हैं, जिनसे पता चलता है की पुरुष का जीवन नारी की देन तो है ही, टिका हुआ भी नारी के धर्म-कर्म पूजा-पाठ की वजह से ही है !

पत्नी के रूप में नारी अपने पति के सुख, स्वास्थ्य और जीवन लिए करवा चौथ का व्रत करती है ! तो माँ के रूप में अपने पुत्र की लम्बी जिन्दगी और सुख, समृद्धि के लिए अहोई अष्टमी का व्रत करती है और बहन के रूप में भी अपने भाई के लिए भाई दूज के त्यौहार में भाई के सुखी और लम्बे जीवन की कामना करती है !

भाई बहन के लिए हिन्दू धर्म में दो त्यौहार हैं ! एक राखी, दूसरा भाई दूज ! राखी में भाई अपनी बहन को रक्षा करने का वचन देता है !
भाई दूज में बहन भाई की लम्बी उम्र की कामना करती है !
भाई दूज अथवा भैया दूज का त्यौहार दीपावली के दो दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वीतिया को पड़ता है !
भाई दूज को यम द्वितीया अथवा भ्रातृ द्वीतिया भी कहते हैं ! यम द्वीतिया कहने का कारण यह भी है कि इसकी मुख्य कथा के भाई बहन यम और यमी (अथवा यमुना) ही हैं !
कहते हैं सूर्य भगवान की पत्नी छाया ने दो बच्चों यमराज और यमुना को जन्म दिया था ! यमुना को अपने भाई यम से बड़ा प्यार था ! वह अक्सर यम को अपने यहां बुलाती रहती थी, किन्तु यमराज की व्यस्तता का यह हाल था कि बहन के यहां जा ही नहीं पाते थे ! कार्तिक शुक्ल पक्ष आया तो यमुना ने भाई यम से द्वीतिया के दिन आने का वचन ले लिया !

द्वीतिया के दिन बहन के यहाँ के लिए निकलते समय यमराज ने विचार किया कि मैं तो काल हूँ ! मुझे अपने घर बुलाने से तो हर कोई कतराता है, पर मेरी बहन जिस प्रसन्नता से मुझे बुला रही है, मुझे भी उतनी ही प्रसन्नता से उसके यहाँ जाना चाहिए और यही सोचकर यमराज ने उस दिन नरक से सभी जीवों को मुक्ति प्रदान कर दी !
यमराज अपनी बहन यमुना के घर पहुँचे तो बहन कि प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा ! यमुना ने भाँति-भाँति के पकवान बनाये ! अपने भाई का टीका किया ! फिर भाई को अपने हाथ से खाना खिलाया ! बहन द्वारा की गयी आवभगत और प्यार तथा दुलार से यमराज अति प्रसन्न हुए और बोले -"बहन आज जितना प्रसन्न मैं पहले कभी नहीं हुआ ! माँग - क्या वर माँगती है ! तेरा भाई आज तुझे सब कुछ देना चाहता है !"

इस पर यमुना बोली -"भाई, मेरे लिए तो तेरा प्यार ही सब कुछ है ! फिर भी यदि कुछ देना ही है तो यह वर दे कि आज के दिन तू हर साल मेरे यहाँ आयेगा और यह वर भी दे कि आज के दिन मेरी तरह जो भी बहन अपने भाई का सम्मान करे और उसे प्यार से टीका लगा अपने हाथ से मीठा खिलाये, भाई को मृत्यु भय ना हो और लम्बी आयु प्राप्त हो !”

यमराज ने तुरन्त ही कहा -"तथास्तु !"
वर देकर यमराज ने यमलोक के लिए प्रस्थान किया !
तभी से यह परम्परा चली आ रही है ! आज के दिन हर बहन अपने भाई को टीका लगाती है और उसकी लम्बी आयु की कामना करती है और उसे मीठा खिलाती है !
बहुत सी बहनें मीठे का डिब्बा भाई के सामने कर देती हैं और भाई उसमे से मीठा उठा कर खा लेता है ! यह उचित नहीं है !
बहनों को अपने हाथ से मीठा खिलाना चाहिए और भाइयों को बहन के हाथ से ही मीठा खाना चाहिए ! तभी उनकी लम्बी आयु के लिए बहन की प्रार्थना सफल होती है !