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दशहरा हिन्दुओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक है ! यह बुराई पर अच्छी की विजय का प्रतीक है ! यह पाप और पापियों के नाश का पर्व है ! अयोध्यापति दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्री राम पिता के वचन का पालन करने के चौदह वर्ष का वनवास काटने के लिए वन में गए तो लंकेश्वर रावण की बहन सूर्पनखा राम और लक्ष्मण पर मुग्ध हो गयी ! उसने भगवान राम से प्रणय निवेदन किया ! पहले तो प्रभु राम ने उसे समझाने का भरसक प्रयास किया, किन्तु जब वह टलने के लिए तैयार ना हुई तो श्रीराम ने कहा -"देवी ! मैं विवाहित हूँ और मैंने जीवन पर्यन्त एकपत्नीव्रत ले रखा है और मेरी पत्नी मेरे साथ है ! मैं तुम्हारा प्रणय निवेदन स्वीकार नहीं कर सकता ! हाँ, वह गोरा-सा सुन्दर सुकुमार मेरा छोटा भाई लक्ष्मण इस वन में अकेला है !
सूर्पनखा लक्ष्मण जी के पास गयी तो लक्ष्मण जी ने सूर्पनखा के नाक-कान काट लिए ! सूर्पनखा रोती हुई अपने सौतेले भाइयों खर-दूषण के पास गयी ! खर दूषण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए वन में रह रहे राम-लक्ष्मण पर अपनी सेना सहित आक्रमण कर दिया ! किन्तु खर-दूषण और उनके बहुत सारे सैनिक मारे गये ! बचे-खुचे सैनिक सूर्पनखा के साथ लंका के राजा रावण के दरबार में पहुँचे ! सूर्पनखा ने रावण के सामने सीता माता के सौन्दर्य का बखान किया और बोली - "भाई ! वन में रहने वाले सन्यासी भाईयों के साथ जो स्त्री है, वह अनुपम सुन्दरी है ! इस ब्रह्माण्ड में उस जैसी कोई नारी नहीं है ! साक्षात् देवी का रूप है वह ! मैं उसे समझाना चाहती थी कि वह वन के कष्टों को त्याग मेरे साथ लंका चले, लंकेश्वर रावण उसे अपनी महारानी बना कर रखेंगे ! किन्तु उन दोनों सन्यासी भाईयों ने मेरी दुर्दशा कर दी ! रावण ने विचार किया कि जिन सन्यासी भाइयों ने महाबली राक्षस वीरों खर-दूषण को मार डाला ! उनकी सेना तहस-नहस कर दी ! वे लोग अवश्य ही मायावी शक्तियों के स्वामी होंगे ! उन्हें छल से ही हराया जा सकता है ! रावण ने अपने मामा मारीच को बुलाया और मन्त्रणा की !
मायावी राक्षस मारीच ने सोने के हिरण का रूप धारण किया और वन में राम-सीता की कुटिया के आस-पास भाग-दौड़ करने लगा ! प्रभु राम जी समझ गये कि यह कोई मायावी हिरण है ! वह उसे पकड़ने के लिए, उसके पीछे निकले ! जाते हुए वह अनुज लक्ष्मण से कुटिया और सीता जी का ध्यान रखने को कह गये !
किन्तु सोने का हिरण तो राक्षस मारीच था, जो रावण की आज्ञानुसार माया रच कर हिरण बना हुआ था ! वह काफी दूर पहुँचकर चिल्लाया – “हाआआआ....लक्ष्मण ! हे सीते !!”
उसी समय रावण ने बादलों की गर्जना जैसा कुछ शोर किया ! उस शोर में मारीच की अस्पष्ट सी आवाज़ सीता और लक्ष्मण के कानों में पड़ी ! सीता जी ने लक्ष्मण से कहा कि उनके बड़े भाई सम्भवतः किसी विपत्ति में हैं, वह उनकी सहायता के लिए प्रस्थान करें ! लक्ष्मण जानते थे कि प्रभु राम पर कोई विपत्ति नहीं आ सकती, किन्तु माता सीता की आज्ञा की अवज्ञा करना उनके लिए सम्भव नहीं था ! लक्ष्मण जी ने कुटिया के बाहर एक लकीर खींची और सीता जी से कहा - "माते, जब तक मैं या भ्राताश्री न आयें, आप इस लकीर से बाहर नहीं आइयेगा !"
लंका का राजा रावण बहुत ही दुष्ट प्रवृत्ति का था ! लक्ष्मण के जाते ही वह एक साधू भिखारी का रूप धारण कर माता सीता के सामने आया ! उसने भिक्षा देने के लिए सीता माता से याचना की ! सीता माता ने उसे भिक्षा लेने के लिए आगे बुलाया तो रावण ने आगे आने इनकार कर दिया और कहा - साधू को भिक्षा देनी है तो घर से बाहर आकर दीजिये, अन्यथा मना कर दीजिये !
सीता जी को साधू से किसी प्रकार के कपट की उम्मीद नहीं थी, वह भिक्षा देने के लिए लक्ष्मण जी द्वारा खींची गयी लक्ष्मण रेखा से बाहर आ गयीं ! रावण ने तत्काल सीता जी को मायापाश में बाँधकर, खींच कर वहीं अदृश्य खड़े पुष्पक विमान में बैठा लिया ! विमान उड़ चला ! सीता जी विलाप करती हुई अपने आभूषण उतार-उतार कर फेंकने लगीं ! सीता जी की पुकार गिद्धराज जटायु ने सुनी तो वह सीता जी की रक्षा के लिए रावण पर आक्रमण कर दिया ! किन्तु रावण ने जटायु के पंख काट कर उसे धरती पर धराशायी कर दिया !
राम-लक्ष्मण जब कुटिया पर वापस पहुँचे तो सीता जी को वहां न देख, उन्हें ढूंढने निकले तो रास्ते में उन्हें घायल अवस्था में जटायु मिला ! प्राण त्यागने से पहले उसने सारा वृतान्त प्रभु राम को बताया और क्षमायाचना की कि वह माता सीता की रक्षा नहीं कर सका !
सीता जी को ढूंढते हुए राम-लक्ष्मण का परिचय वानर वीर हनुमान और सुग्रीव से हुआ ! राम-लक्ष्मण ने दुष्ट बालि का वध कर सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य दिलवाया ! फिर वानरों की सहायता से सीता जी को ढूंढने लगे ! एक पहाड़ी पर हनुमान जी को जटायु का बड़ा भाई सम्पाती मिला ! सम्पाती ने अपनी दिव्यदृष्टि से देखकर हनुमान जी को बताया कि सीताजी लंका की अशोक वाटिका में हैं !
श्री राम जी की आज्ञा से हनुमान जी ने सीता जी के बारे में सही-सही जानकारी प्राप्त करने के लिए लंका प्रस्थान किया ! हनुमान जी पर सीता जी को विश्वास हो जाए, इसके लिए श्री राम जी ने अपनी विशेष अंगूठी भी उन्हें दी !
हनुमान जी ने लंका में अशोक वाटिका में सीता जी से भेंट की और उन्हें बताया कि श्रीराम शीघ्र ही उन्हें रावण की कैद से मुक्त कराने के लिए लंका पर आक्रमण करेंगे ! फिर भूख लगने पर उन्होंने पेट भरने के लिए माता सीता से कन्द-मूल फल खाने की आज्ञा प्राप्त की ! किन्तु जब वह खाने के लिए फल तोड़ने लगे तो अशोक वाटिका के प्रहरियों(पहरेदारों) ने हनुमान जी पर आक्रमण कर दिया !
हनुमान जी ने सभी प्रहरियों को मार दिया और अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया ! रावण को जब इस बारे में खबर लगी तो उसने अपने छोटे पुत्र अक्षयकुमार को बहुत सारे सैनिकों के साथ हनुमान जी को पकड़ने के लिए भेजा ! किन्तु हनुमान जी ने अक्षयकुमार सहित सभी राक्षस सैनिकों को मार डाला ! तब रावण ने अपने बड़े पुत्र मेघनाथ को भेजा ! मेघनाथ को हनुमान जी को पकड़ने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना पड़ा, जिसका जीवन में केवल एक ही बार उपयोग किया जा सकता था !
हनुमान जी ब्रह्मपाश में बन्ध गए ! मेघनाथ उन्हें रावण के दरबार में ले गया ! रावण हनुमान जी को मृत्युदण्ड देना चाहता था, किन्तु उसके छोटे भाई विभीषण ने रावण को समझाया कि हनुमान एक दूत के रूप में लंका आया है और दूत को मारना नीति के विरुद्ध है ! इसे कुछ ऐसी सजा देनी चाहिए कि यह वानर डर जाए !
रावण ने सोचा - वानर को अपनी पूंछ अति प्रिय होती है ! अतः उसने अपने अनुचरों को हनुमान जी की पूंछ में आग लगा देने का आदेश दिया ! पूंछ में आग लगते ही हनुमान जी ने उछल-कूद मचानी शुरू कर दी और लंका में आग लगाते हुए अन्त में समुद्र में कूद कर पूँछ की आग बुझा ली ! उसके बाद लौट कर श्री राम जी को सारा हाल बताया !
सोने की लंका चारों तरफ से समुद्र से घिरी हुई थी ! समुद्र पार किये बिना लंका पहुँचना असम्भव था ! वानरों की सेना में भल्लूकराज जाम्बन्त भी थे ! जाम्बन्त महाज्ञानी महायोद्धा थे ! उन्होंने श्रीराम जी को बताया कि वानर सेना में नल और नील नाम के दो वानर योद्धा हैं, जिन्हें वर प्राप्त है, जिसके कारण उनके द्वारा समुद्र में छोड़े गए पत्थर पानी में डूबेंगे नहीं ! तब सारे वानर दूर-दूर से पत्थर लाकर समुद्र के किनारे रखते गए और उन पत्थरों से नल और नील उन्हें जोड़कर समुद्र में छोड़ कर, एक पुल बनाते चले गए और फिर लंका पहुंचकर समुद्र तट पर उन्होंने अपना शिविर बनाया !
प्रभु राम ने बालिपुत्र अंगद को अपना दूत बना कर रावण के दरबार में लंका भेजा ! अंगद ने रावण को समझाया कि यदि वह सम्मान सहित सीता माता को लौटा दे और श्री राम से क्षमा माँग ले तो प्रभु राम उसे क्षमा कर देंगे ! किन्तु अहंकार में डूबे रावण ने अंगद का अपमान करते हुए कहा कि वह वहां से चला जाए, वरना उसके सैनिक उसे उठाकर बाहर फेंक देंगे !
अंगद ने प्रभु राम की शक्ति का परिचय कराने के लिए रावण से कहा - यदि आपका कोई योद्धा मेरा पाँव हिला दे तो हम लड़े बिना हार स्वीकार कर लेंगे !
रावण को लगा - यह तो बहुत मामूली काम है ! उसने एक-एक करके अपने सभी बड़े-बड़े योद्धाओं को भेजा, किन्तु कोई अंगद का पाँव न हिला सका ! अन्ततः रावण खुद अंगद का पांव हिलाने के लिए आया और जमीन पर बैठ कर उसने अंगद का पाँव पकड़ा ही था कि अंगद न्र रावण से पाँव छुड़ा कर कहा -"मेरे पाँव क्यों पकड़ रहे हो लंकेश ! श्री राम के पाँव पकड़ लो तो तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे !"
रावण श्री राम के लिए अभद्र शब्दों का प्रयोग करने लगा तो अंगद ने एक घूँसा धरती पर मारा तो धरती हिल गयी ! मानों भूकम्प आया हो !
श्री राम के शिविर में पहुँच अंगद ने बताया कि दुष्ट और अहंकारी रावण को सजा देने के लिए उस पर आक्रमण करना आवश्यक है ! और फिर युद्ध शुरू हो गया !
युद्ध में रावण के सभी योद्धा एक-एक करके मारे गए ! रावण के छोटे भाई विभीषण ने रावण को श्रीराम से युद्ध न करने के लिए समझाया तो रावण ने विभीषण को लात मार कर राजदरबार से बाहर कर दिया ! विभीषण बचपन से प्रभु भक्त थे ! रावण द्वारा दुत्कार दिए जाने पर वह प्रभु राम की शरण में आये !
युद्ध में रावण पुत्र मेघनाथ के शक्तिबाण से लक्ष्मण जी मूर्च्छित हो गए तो विभीषण ने श्रीराम को बताया कि लंका में सुषेण नामक वैद्य हैं, वह लक्ष्मण जी की मूर्च्छा दूर कर सकते हैं !
हनुमान जी सुषेण को उसके मकान सहित उठा लाये ! सुषेण ने बताया कि लक्ष्मण जी की मूर्च्छा संजीवनी बूटी से ही दूर हो सकती है ! संजीवनी बूटी लाने के लिए भी हनुमान जी को भेजा गया ! संजीवनी बूटी लाने के लिए हनुमान जी द्रोणगिरि पर्वत के उस क्षेत्र में पहुँचे, जहां संजीवनी बूटी थी, किन्तु हनुमान जी संजीवनी बूटी को पहचान नहीं सके तो वह द्रोणगिरि पर्वत के उस हिस्से को ही उखाड़ कर युद्धस्थल में ले आये ! वैद्य सुषेण ने बूटी पहचान कर लक्ष्मण जी की चिकित्सा की और मूर्च्छा दूर की !
रावण के दूसरे भाई कुम्भकर्ण को ब्रह्मा जी से छह महीने की नींद का वरदान मिला हुआ था ! उसे जबरदस्ती जगाकर युद्ध क्षेत्र में भेजा गया ! किन्तु कुम्भकर्ण को श्रीराम जी ने और मेघनाथ को लक्ष्मण जी ने मार दिया ! अन्ततः रावण को स्वयं युद्ध क्षेत्र में आना पड़ा और अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान् राम ने दशानन रावण का वध किया !
त्रैलोक्य विजेता रावण पर श्री राम की विजय के रूप में दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है ! दशमी के दिन रावण का वध हुआ था, इसलिए इसे विजयदशमी भी कहा जाता है !