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धन तेरस का त्यौहार

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धन तेरस का त्यौहार मनाया जाता है! धनतेरस मनाने के पीछे अनेक किवदंतियाँ हैं ! कहा जाता है इसी दिन आरोग्य के देवता धन्वन्तरि का सागर मंथन में अवतरण हुआ था ! धन्वन्तरि को भगवान् विष्णु का ही अंश माना जाता है ! भगवान धन्वन्तरि ही सागर से अवतरित होते समय अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे ! इसलिए धनतेरस के दिन किसी भी बर्तन की खरीद को अत्यन्त शुभ माना जाता है !

धनतेरस के दिन लोग आभूषण सोना आदि भी खरीदते हैं ! जो लोग सोना नहीं खरीद सकते, वह पीतल के बर्तन खरीदते हैं ! मान्यता है कि धनतेरस के दिन यदि यदि हम आभूषण - सोना आदि खरीदते हैं तो हमारे धन में दिनोंदिन वृद्धि होती है, किन्तु धनतेरस के दिन चाँदी अथवा चाँदी के आभूषण खरीदना अत्यन्त शुभ एवं लाभकारी माना गया है ! इसके पीछे यह मान्यता है कि चाँदी चन्द्रमा का प्रतीक है और चाँदनी-सी शीतलता प्रदान करती है और चाँदी की खरीद से परिवार में सुख एवं प्रसन्नता विद्यमान रहती है ! जिस घर में आपस में झगड़े होते हों, उस घर के लोगों को प्रति वर्ष धनतेरस के दिन अपने सामर्थ्य अनुसार चाँदी अवश्य खरीदनी चाहिए ! जिस घर में सुख समृद्धि का वास हो, उस घर के लोगों को हमेशा सुख-समृद्धि-प्रसन्नता कायम रखने के लिए चाँदी अवश्य खरीदनी चाहिए !

कहा जाता है कि आयुर्वेद भगवान धन्वन्तरि की ही देन है ! यह भी कहा जाता है कि सृष्टि को सर्वनाश से बचाने के लिए जब भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया था, तब उनका कण्ठ नीला पड़ गया और शिवजी की देह हलाहल विष की ज्वाला से धधकने लगी थी, तब धन्वन्तरि जी ने ही उन्हें अमृत प्रदान किया था ! उसी समय अमृत की कुछ बूँद छलक कर काशी में जा गिरी थीं ! तभी काशी विश्व की सबसे पवित्र नगरी हो गयी ! आज भी बहुत से लोग काशी में प्राण त्यागने को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं ! धन तेरस की पूजा के विषय में एक कथा भी कही जाती है ! कहते हैं कि किसी समय एक नगर में राजा हेमराज का राज्य था ! राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो राजा ने विख्यात ज्योतिषियों से उसकी कुण्डली बनवाई ! ज्योतिषियों ने बताया कि राजकुमार जब वयस्क हो जाएगा और उसका विवाह होगा तो विवाह के चार दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी !

अपने पुत्र की अकाल मृत्यु की कल्पना से ही राजा हेमराज भयभीत हो उठा ! उसने निश्चय किया कि वह राजकुमार के ऊपर किसी नारी की परछाईं तक नहीं पड़ने देगा ! उसने एक उजाड़ जगह में महल बनवाकर वहीं अपने पुत्र के लालन-पालन का प्रबन्ध कर दिया ! लेकिन होनी को कौन टाल सकता है ! जब राजकुमार जवान था और उस महल से बाहर घूम रहा था, तभी पड़ोसी राज्य की राजकुमारी रास्ता भटक कर उधर आ निकली !

दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए और दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया !(गन्धर्व विवाह - यह एक प्रकार का गुप्त विवाह होता है, इसमें विवाह करने वाले स्त्री-पुरुष के अलावा उनके विवाह के बारे में कोई नहीं जानता)
जैसा कि ज्योतिषियों ने बताया था गन्धर्व विवाह के चार दिन बाद ही यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुँचे ! पति के प्राण त्यागते ही राजकुमारी शोकाकुल होकर तड़पने लगी ! विलाप करने लगी ! उसका दुःख इतना हाहाकारी था कि यमदूतों का दिल भी पसीज गया, किन्तु वे अपने कर्तव्य से बँधे थे ! वे राजकुमार के प्राण लेकर यमलोक पहुँचे !

तब एक यमदूत ने यमराज से पूछा कि प्रभु, क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है - जिससे किसी की अकाल मृत्यु को टाला जा सके !
तब यमराज ने कहा - एक उपाय है, जो मनुष्य को अकाल मृत्यु से बचा सकता है ! कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात्रि को जो भी मेरे नाम का दीपक जला कर दक्षिण दिशा में रखेगा, उसे अकाल मृत्यु का कभी भी कोई भय नहीं रहेगा !
यही कारण है - धनतेरस की रात लोग दीप जलाकर दक्षिण में तथा अपने घर के द्वार पर भी रखते हैं !

धनतेरस की रात दीप जलाकर भगवान धन्वन्तरि की पूजा भी की जाती है ! जिससे सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य सदैव उत्तम रहे !