दीपावली के अगले ही दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रथमा के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है ! इसे अन्नकूट भी कहा जाता है ! कहते हैं - द्वापर युग से पहले इस दिन इन्द्र देवता की पूजा की जाती थी और उनसे प्रार्थना की जाती थी कि समय पर वर्षा करें, जिससे उत्तम खेती हो और लोगों को अन्न की कमी ना हो ! अकाल ना पड़े ! किन्तु देवताओं के राजा इन्द्र ने अपने दायित्व का ध्यान नहीं रखा ! देवताओं के राजा होने के कारण वह यह समझने लगे कि वह तो अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं ! उन्हें अहंकार हो गया ! उन्हें कर्तव्य से विमुख देख श्रीविष्णु ने इन्द्र का अभिमान चूर-चूर करने का निर्णय किया ! श्रीविष्णु उन दिनों बालक कृष्ण के रूप में गोकुल के नन्दबाबा के यहां पल-बढ़ रहे थे !
कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रथमा के दिन श्रीकृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी सुबह से ही भाँति-भाँति के पकवान बना रहे हैं ! मैया यशोदा भी सुबह से ही रसोई में व्यस्त हो गयीं थीं ! बालक श्रीकृष्ण ने मैया से पूछा कि मैया आज क्या है, जो इतने पकवान बना रही हो ?
मैया ने बालक कृष्ण के सिर पर हाथ फेरा और प्यार से बोलीं-" लल्ला ! आज इन्द्र देवता की पूजा है ! उसी की तैयारी कर रही हूँ !"
"इन्द्र की पूजा क्यों ? इन्द्र तो कभी समय पर बरसात नहीं करते ! हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए ! हमारी गैया (गाय) गोवर्धन पर घास चरती हैं ! बालक लोग उधर खेलते हैं !"
यशोदा मैया के लिए तो अपने कन्हैया की बात से बढ़कर कुछ भी नहीं था ! उन्हें श्रीकृष्ण की बात में दम लगा ! उन्होंने अपनी सखी-सहेलियों और पड़ोसिनों से बात की ! धीरे-धीरे यह बात सारे गोकुल में फ़ैल गयी और यह श्रीकृष्ण की माया ही थी कि बड़े बुजुर्गों और पंचों ने भी यही फैसला लिया कि इस बार इन्द्र की नहीं, गोवर्धन की पूजा की जायेगी !
और उस वर्ष सारे ब्रज में किसी ने भी इन्द्र की पूजा नहीं की ! देवराज इन्द्र को इस बारे में पता चलते देर नहीं लगी ! इन्द्र ने अपनी पूजा नहीं किये जाने को अपना अपमान समझा ! क्रोधित होकर उसने मूसलाधार बारिश शुरू का दी ! बारिश के वेग से ब्रजवासियों के झोपड़े गिर गये ! कच्चे मकान ढह गये ! सामान बहने लगा ! ब्रज के हर परिवार में गाय अवश्य थीं ! सभी गाय त्रस्त होकर रम्भाने लगीं ! लोग श्रीकृष्ण को बुरा-भला कहने लगे ! लोग यशोदा मैया और नन्द बाबा से भी कहने लगे कि आपके लल्ला की बात मानने के कारण हमें यह दिन देखना पड़ रहा है ! बारिश के वेग से ब्रजवासियों के झोपड़े गिर गये ! कच्चे मकान ढह गये ! सामान बहने लगा ! ब्रज के हर परिवार में गाय अवश्य थीं ! सभी गाय त्रस्त होकर रम्भाने लगीं ! लोग श्रीकृष्ण को बुरा-भला कहने लगे ! लोग यशोदा मैया और नन्द बाबा से भी कहने लगे कि आपके लल्ला की बात मानने के कारण हमें यह दिन देखना पड़ रहा है !
यशोदा मैया ने श्रीकृष्ण से कहा कि लल्ला, तेरी बात मान कर तो सारे ब्रज में मुसीबत आ गयी ! इन्द्र देवता नाराज हो गये हैं !
तो श्रीकृष्ण बोले -"दुखी क्यों होती है मैया ! हमने गोवर्धन की पूजा की है तो वही हम सबकी रक्षा करेंगे ! चल, सारे ब्रजवासियों को गोवर्धन की तरफ ले चल !"
और श्रीकृष्ण अपनी बांसुरी बजाते हुए स्वयं सबसे आगे-आगे चलने लगे ! बारिश के भयंकर शोर में भी श्रीकृष्ण की बांसुरी की आवाज़ सारे ब्रज में गूँजती चली गयी ! सबसे पहले ब्रज की सारी गायें रम्भाती हुई श्रीकृष्ण के पीछे दौड़ी ! फिर सारे ब्रजवासी अपने-अपनी गायों के पीछे-पीछे श्रीकृष्ण के साथ चलने लगे ! लीलाधर श्रीकृष्ण की माया ही थी कि सभी बहुत जल्दी गोवर्धन पर्वत तक पहुँच गये !
श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी कमर में खोंसी और दोनों हाथ जोड़ गोवर्धन से कहा कि हे गोवर्धन आपकी पूजा से इन्द्र देवता कुपित हो गये हैं ! आप हमारी रक्षा कीजिये !
गोवर्धन ने कहा -"प्रभु, मैं तो निश्चल हूँ ! आप मुझे ऊपर उठाइये तो मैं सबको अपनी शरण में ले लूँगा !"
लीलाधर श्रीकृष्ण ने अपने दायें हाथ की सबसे छोटी कनिष्ठा अँगुली से पर्वत को ऊपर उठाया तो पर्वत ऊपर उठता चला गया ! श्रीकृष्ण पर्वत के नीचे एक ऊँची चट्टान पर उछल कर खड़े हो गये और अपना हाथ पूरी तरह ऊपर उठा दिया ! सारे ब्रजवासियों ने अचम्भित होकर देखा कि श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अँगुली पर पर्वत को इतना ऊँचा उठा दिया है कि सारे ब्रजवासी आराम से पर्वत के नीचे आ सकें ! सारे ब्रजवासी वर्षा के प्रकोप से बचने के लिए गोवर्धन के नीचे आ गये ! इन्द्र ने यह चमत्कार देखा तो उसके क्रोध का ठिकाना न रहा ! उसने वर्षा का वेग और तेज कर दिया ! यह देख श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र और शेषनाग का आह्वान किया ! फिर चक्र से कहा कि तुम गोवर्धन के शीश पर जाकर वर्षा के वेग को काट दो ! और शेषनाग से कहा कि तुम गोवर्धन के चारों तरफ इस तरह कुण्डली मारकर बैठ जाओ कि पानी की एक बूँद भी किसी ब्रजवासी या पशु-पक्षियों को छू न सके !
सुदर्शन चक्र और शेषनाग ने प्रभु की आज्ञा का पालन किया !
इन्द्र सात दिन और सात रात तक भयंकर वर्षा करता रहा, किन्तु ब्रजवासी गोवर्धन के नीचे सुरक्षित आराम करते रहे ! सात दिन बाद इन्द्र यह समझ गया कि ब्रजवासियों का जीवन, उसके महाप्रकोप से बचाने वाला कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकता ! वह भागा-भागा सृष्टा ब्रह्मा जी के पास पहुँचा और हाथ जोड़कर बोला -"हे देव ! मैं बहुत थक गया हूँ, किन्तु वह नन्हा बालक कौन है, जो अपनी अँगुली पर गोवर्धन को उठाये, बिना थके सात दिन और सात रातों से खड़ा है !"
ब्रह्मा जी मुस्कुराये और बोले -"हे देवेन्द्र ! वह तो साक्षात हरि हैं ! विष्णु हैं ! उन्होंने ने ही कृष्ण अवतार लिया है ! वह नारायण हैं ! और तुम्हारा अभिमान भंग करने के लिए ही उन्होंने यह सब लीला रची है ! जाओ, ब्रजवासियों का जो कुछ तुमने उजाड़ा है ! उसे फिर से पूर्ववत कर दो ! और जाकर श्रीकृष्ण से क्षमा माँगो ! अन्यथा वह कुपित हो गये तो तुम्हारी रक्षा तो तीनों लोकों में कोई भी नहीं कर सकेगा !"
इन्द्र ने तत्काल ही वर्षा रोक दी और ब्रज को फिर से पहले जैसा हरा-भरा कर दिया ! फिर वह गोवर्धनधारी श्रीकृष्ण के सम्मुख प्रकट हुआ और हाथ जोड़कर बोला - "हे प्रभु, मेरा अपराध क्षमा कीजिये और वापस अपने-अपने घर जाइये !"
इस घटना के बाद से ही ब्रज में गोवर्धन पूजा होने लगी !
दीपावली के निकट समय में मौसम में भी बदलाव आता है ! इन दिनों नई-नई सब्जियां बाजार में आती हैं ! आलू, बैगन, फूल गोभी, सेम, सैगरी, गाजर, मूली, टिन्डे, अरबी, भिन्डी, परवल, शिमला मिर्च, लौकी, कच्चा केला, कद्दू , टमाटर आदि सब्जियाँ खूब मिलती हैं ! गोवर्धन पूजा में भिन्न-भिन्न सब्जियों को मिलाकर घर की सब्जी बनाई जाती है ! बहुत से परिवारों में जौ, बाजरे, चने आदि के आते की रोटियां भी बनाई जाती हैं ! मिश्रित अन्न की रोटी बनाने तथा मिश्रित सब्जियों का साग बनाया जाता है, इसीलिये गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है !