भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म दिवस भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है । लगभग पाँच हज़ार वर्ष पहले मथुरा में कंस नामक राजा राज्य करता था । उसकी बहन देवकी का विवाह कंस के मित्र वसुदेव के साथ हुआ था । एक बार कंस स्वयं अपनी बहन का रथ हाँककर बहनोई वसुदेव और अपनी बहन देवकी को ससुराल छोड़ने जा रहा था । तभी आकाशवाणी हुई कि पापी कंस, तेरी बहन देवकी का आठवाँ पुत्र तेरा काल होगा ! यह सुनते ही कंस इतना कुपित हुआ कि वह अपने बहनोई वसुदेव को ही जान से मार देना चाहता था ! किन्तु देवकी ने कंस के पाँव पकड़ लिए और रोते-रोते कहा - भाई ! मेरे पति को मत मारो ! मेरा सुहाग मत उजाड़ो ! चाहे तुम मेरी सारी संतान मुझ से ले लेना ! कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्यार करता था ! उसने देवकी की बात मान ली और रथ वापस मोड़ लिया ! मथुरा वापस लौट कर उसने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया । उसके बाद एक-एक करके उसने देवकी की सात सन्तानों की हत्या कर डाली । अब उसे प्रतीक्षा थी - देवकी की आठवीं संतान की ! भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की गहन अन्धेरी रात में जब मूसलाधार वर्षा हो रही थी ! यमुना नदी पूरे उफान पर थी ! पृथ्वी को पापियों के बोझ से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान् श्री कृष्ण का जन्म हुआ ! श्रीकृष्ण का जन्म होते ही कारागार के द्वार अपने आप खुल गए । वसुदेव ने मौके का फायदा उठाया और उसे अपने मित्र नन्द के यहाँ छोड़ आए । नन्द की पुत्री को वह अपने साथ ले आये ! देवकी को लगा, उसकी कोख से आठवें पुत्र के स्थान पर पुत्री को जन्मा देख कंस को सम्भवतः दया आ जाए ! किन्तु कंस का क्रूर मन न पसीजा ! उसने कन्या को देवकी से छीन लिया और मारने के लिए पत्थर पर पटका, किन्तु वह कन्या कंस के हाथ से छूट आकाश में उड़ गयी और उसने आकाशवाणी की कि दुष्ट कंस तेरा काल तो गोकुल में खेल रहा है ! कंस को श्रीकृष्ण के जीवित होने का संदेश मिल गया तो उसने श्रीकृष्ण को मारने के लिए पहले पूतना नाम की राक्षसी, फिर क्रमशः केशी , अरिष्ठ और काल्याख्य नाम के राक्षसों को भेजा, किन्तु सबके सब श्रीकृष्ण के हाथों मारे गए ! अन्ततः श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त कराया । भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मदिन को ही जन्माष्टमी त्यौहार के रूप में मनाया जाता है !