करवा चौथ का त्यौहार भारत के अधिकाँश प्रदेशों में विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लम्बी आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए मनाया जाता है ! लेकिन बहुत से सम्प्रदायों में कुंवारी लडकियां भी अच्छे पति की कामना करते हुए, अच्छा पति पाने के लिए यह व्रत रखती हैं ! यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। भारत में चौथ माता के मन्दिर अनेक स्थानों पर हैं, किन्तु सबसे मशहूर मन्दिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है । करवा चौथ के दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चन्द्रमा का पूजन किया जाता है !
इस व्रत के लिए कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन विवाहित सुहागिन महिलायें सुबह-सुबह उठ जाती हैं ! करवा चौथ का त्यौहार अधिकाँश औरतें अपने मायके अथवा ससुराल की परम्पराओं के अनुसार मनाती हैं ! बहुत से परिवारों में सास बहू के लिए सरगी तैयार करती है ! मुंह अँधेरे उठकर सरगी खाई जाती है ! उसके बाद ही करवा चौथ का व्रत शुरू होता है ! सरगी में दूध और फेनी से बने पदार्थ, फल, मिठाई, मेवे, मटिठ्यां, सेवियां, आलू से बनी कोई सामग्री, पूरी आदि तथा नारियल के पानी का सेवन किया जाता है ! बहुत से परिवारों में सुबह से रात को चौथ का चन्द्रमा दिखने तक निर्जला व्रत रखा जाता है, किन्तु अनेक परिवारों में महिलायें कथा सुनने के बाद चाय अथवा पानी का सेवन कर लेती हैं ! किन्तु भोजन ग्रहण रात को चन्द्र दर्शन के बाद ही किया जाता है ! जिन महिलाओं का वीपी low हो जाता हो, उन्हें विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है !
पूजा के लिए मिट्टी अथवा ताँबे के लोटे (करवे ) में जल रखा जाता है ! रात को किसी छलनी से चन्द्रमा देखकर करवे द्वारा जल अर्पण किया जाता है ! उसके बाद महिलायें अपने पति के हाथों जल पीकर अपना व्रत भंग करती हैं !
आजकल ग्रामीण क्षेत्रों में तो चन्द्र दर्शन आसानी से हो जाते हैं, किन्तु शहरों में मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स होने के कारण हर महिला के लिए चन्द्रमा को देखना भी सरल नहीं रह गया है ! महिलाओं को बिल्डिंग की छत पर जाकर अथवा किसी पार्क में जाकर चन्द्र दर्शन करने पड़ते हैं ! दिन भर भूखी प्यासी रह कर इस व्रत की सारी कठिनाइयाँ-मुश्किलें, महिलायें अपने पति के सुख के लिए सहर्ष सह लेती हैं !