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विश्वकर्मा पूजा

दीपावली के अगले ही दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रथमा के दिन विश्वकर्मा पूजा भी की जाती है ! विश्वकर्मा निर्माण के देवता माने जाते हैं ! बहुत से लोग भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विश्वकर्मा पूजा करते हैं ! किन्तु दीपावली के अगले दिन जब बहुत से लोग गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का त्यौहार मनाते हैं, उसी दिन विश्वकर्मा पूजा करते हैं ! किसी भी प्रकार की मशीन पर काम करने वाले अथवा औजारों से काम करने वाले दीपावली के अगले अपनी मशीन और औजारों की पूजा भी करते हैं और भगवान विश्वकर्मा की पूजा करके बतासे या किसी भी मिठाई का प्रसाद बाँटते हैं !

कहा जाता है - स्वर्ग का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था! इसके अलावा भगवान कृष्ण की द्वारका, कुबेर की स्वर्णनगरी, जो बाद में रावण की लंका कहलाई का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था ! बाद में कैलाश पर्वत पर कुबेर की अलकापुरी, इन्द्रपुरी का निर्माण भी विश्वकर्मा जी ने किया था !

हिन्दुओं में रोचक धर्मकथाओं का अथाह भण्डार है !
किसी भी अन्य धर्म में इतनी रोचक-मनोरंजक कथाएँ नहीं हैं !

ऐसी ही एक कथा के अनुसार जब सर्वत्र शून्य था ! कहीं कुछ भी नहीं था, तब शून्य एक सागर उत्पन्न हुआ ! उसी सागर में शेषनाग की शैय्या पर भगवान विष्णु का आविर्भाव हुआ ! उसके बाद भगवान विष्णु की नाभि से एक कमल की उत्पत्ति हुई ! कमल में सृष्टा ब्रह्मा का आविर्भाव हुआ ! ब्रह्मा जी ने प्रकट होने के बाद ही सृष्टि के निर्माण का कार्य सम्भाल लिया ! ब्रह्मा जी के एक पुत्र धर्म का विवाह वस्तु से हुआ ! धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए ! सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया ! वास्तु के एक पुत्र विश्वकर्मा हुए, जो चमत्कारी शिल्पी थे ! निर्माण कार्यों में विश्वकर्मा जी की क्षमता अद्वितीय थी !

ब्रह्मा जी ने प्रकट होने के बाद ही सृष्टि के निर्माण का कार्य सम्भाल लिया ! ब्रह्मा जी के एक पुत्र धर्म का विवाह वस्तु से हुआ ! धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए ! सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया ! वास्तु के एक पुत्र विश्वकर्मा हुए, जो चमत्कारी शिल्पी थे ! निर्माण कार्यों में विश्वकर्मा जी की क्षमता अद्वितीय थी !
कहा जाता है एक बार वृत्तासुर नामक राक्षस ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया ! उसने इन्द्र सहित सभी देवताओं को भी स्वर्ग से बाहर निकाल दिया ! सभी देवता अपनी व्यथा कथा लेकर भगवान विष्णु, भगवान शिव और ब्रह्मा जी के पास गये, किन्तु सभी ने वृत्तासुर को मारने में असमर्थता दिखाई ! किन्तु देवताओं का दुःख देख ब्रह्मा जी ने देवराज इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर दधीचि नाम के महर्षि हैं ! जो असीम तेजस्वी हैं ! उनकी हड्डियों में प्रबल तेज है ! यदि महर्षि अपनी हड्डियां दान दे दें तो उससे एक बज्र बनेगा, जो अति शक्तिशाली हथियार तो होगा, किन्तु उसके निर्माण में किसी धातु का प्रयोग ना होने के कारण उससे वृत्तासुर को मारा जा सकेगा !
महर्षि दधीचि ने लोकहित का ध्यान कर अपने प्राण त्याग हड्डियां दान में दे दीं ! तब विश्वकर्मा जी ने महर्षि दधीचि की हड्डियों से इन्द्र के लिए उसी शक्तिशाली हथियार बज्र का निर्माण किया, जिसके बिना इन्द्र का अस्तित्व अधूरा माना जाता है !

औजारों और मशीनों पर काम करने वाले विश्वकर्मा जी की पूजा इसलिए करते हैं, क्योंकि माना जाता है - विश्वकर्मा जी की पूजा से व्यापार दिनोंदिन फलता-फूलता है ! बहुत से क्षेत्रों में विश्वकर्मा जी की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं और पूरे दिन उनकी मूर्ति के सामने नाच कर- गाकर उत्सव मनाया जाता है और अगले दिन बड़ी धूम-धाम से मूर्ति का विसर्जन किया जाता है !

श्री विश्वकर्मा जी की आरती