एक बार की बात है! विघ्न विनाशक गणेश जी का मन पृथ्वी भ्रमण का हुआ!
गणेश जी भूलोक आये और एक लड़के का वेष धरकर एक नगर में घूमने निकले।
उन्होंने अपने साथ में चुटकी भर चावल और चुल्लू भर दूध ले लिया।
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नगर में घूमते हुए, उन्हें जो भी मिलता, उससे वह खीर बनाने का आग्रह करने लगते ।
बोलते – ” माई, ये ले मेरा चावल- दूध, खीर बना दे !”
सुनकर लोग हँसते।
गणेश जी का चावल-दूध देखते और कहकहे लगाते!
बहुत समय तक गणेश जी घूमते रहे , मगर कोई भी खीर बनाने को तैयार नहीं हुआ।
किसी ने ये भी समझाया कि इतने से सामान से खीर नहीं बन सकती!
पर गणेश जी को तो खीर बनवानी ही थी। बोले - "मेरे पास तो यही सामान है, इतने की ही खीर बनवानी है! इससे ही मेरा पेट भर जायेगा! इसकी ही खीर बनवा दो!"
पर किसी ने गणेश जी की नहीं सुनी!
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अंत में एक गरीब बूढ़ी अम्मा ने गणेश जी से कहा -चल बेटा, कब से डोल रहा है तू! चल, मेरे साथ, मेरे घर चल, मैं तुझे खीर बनाकर खिलाऊंगी।
गणेश जी उसके साथ चले गए।
बूढ़ी अम्मा ने उनसे चावल और दूध लेकर एक बर्तन में उबलने चढ़ा दिए ! मीठा अपने पास से डाल दिया!
थोड़ी देर बाद दूध में ऐसा उफान आया कि बर्तन छोटा पड़ने लगा।
बूढ़ी अम्मा को बहुत आश्चर्य हुआ, कुछ समझ नहीं आ रहा था, जरा से चावल-दूध के लिए बर्तन छोटा कैसे पड़ रहा है।
फिर सोचा - होगा कोई कारण! चावल बढ़िया होगा!
और अम्मा ने घर का सबसे बड़ा बर्तन रखा। छोटे बर्तन का चावल-दूध बड़े में उड़ेल दिया!
वो भी पूरा भर गया। खीर बढ़ती जा रही थी।
उसकी खुशबू भी चारों तरफ फैल रही थी।
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खीर की मीठी मीठी खुशबू के कारण अम्मा की बहू के मुँह में पानी आ गया!
उसकी खीर खाने की तीव्र इच्छा होने लगी।
उसने एक कटोरी में खीर निकाली और दरवाजे के पीछे बैठ कर गणेश जी से बोली –
”ले बेटा, तू भी खा, मै भी खाऊँ...!“
और दोनों ने खीर खा ली। दोनों अघा लिये!
तभी बूढ़ी अम्मा ने बाहर बैठे गणेश जी को आवाज लगाई।
"बेटा, तेरी खीर तैयार है। आकर खा ले।"
गणेशजी बोले -"अम्मा, तेरी बहू ने भोग लगा दिया, मेरा पेट तो भर गया। बाकी खीर तू सारे गांव वालों को खिला दे।"
पर बेटा, सारे गाँव वालों के लिए खीर कम न पड़ जाये!"
नहीं पड़ेगी अम्मा...! तू लोगों को बुला तो सही!"
बूढ़ी अम्मा गांव वालों को निमंत्रण देने गई और बोली - "खीर के लिए एक बड़ा सा बर्तन अपने अपने घर से लेते आना!"
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सब हंसने लगे।
अम्मा के पास खुद के खाने के लिए तो कुछ है नहीं, लोगों को खीर खिलायेगी। फिर भी तमाशा देखने के लिए अम्मा के पीछे पीछे आ गये!
कि पता नहीं , गांव भर को कैसे खीर खिलाएगी।
पर तमाशा रोचक बनाने के लिए हर कोई अपने घर का बड़े से बड़ा बर्तन लेकर आया!
और फिर...
सारा गाँव बूढ़ी के घर के सामने इकट्ठा हो गया!
बूढ़ी अम्मा ने सबको पेट भर खीर खिलाई और सबके बर्तन खीर से भर दिये, ताकि लोग घर भी ले जायें!
लोग हक्के-बक्के...!
ऐसी स्वादिष्ट खीर उन्होंने आज तक नहीं खाई थी।
सभी ने तृप्त होकर खीर खाई, घर के लिए भी ले गये, लेकिन खीर फिर भी ख़त्म नहीं हुई।
भंडार भरा का भरा ही रहा।
स्वादिष्ट खीर का भगोना कभी खाली न हुआ!
तो.....
हे गणेश जी महाराज, जैसे बूढ़ी अम्मा के घर का खीर का भगोना भरा रहा, वैसे ही हमारे घर का भंडार भी सदा भरे रखना।
बोलो गणेश जी महाराज की…… जय !!!