कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन बजरंग बली हनुमान जी की पूजा भी की जाती है !
बाल्मिकी रामायण के अनुसार हनुमान जी का जन्म कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन हुआ था ! बहुत सी कथाओं में हनुमान जी के जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन माना गया है, यही कारण है हनुमान जयन्ती वर्ष में दो बार मनाई जाती है !
हनुमान जी के जन्म के बारे में कहा जाता है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी में मंगलवार के दिन भगवान् शिव के अंश ने वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के गर्भ से जन्म लिया था !
इसीलिये मंगलवार के दिन को हनुमान जी का दिन माना जाता है !
भक्तगण हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए हर मंगलवार को प्रसाद चढ़ाते हैं ! छोटी दिवाली के दिन हनुमान जी की पूजा करने वाले सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाना अति शुभ मानते हैं !
कहते हैं - सुन्दरकाण्ड के पाठ से रोग-शोक-भय का नाश होता है और सुख-समृद्धि-सम्पन्नता की प्राप्ति होती है !
आज के दिन हनुमान जी का पूजन करते समय हनुमान जी की मूर्ति पर सिन्दूर का लेप करें ! हनुमान जी पर सिन्दूर क्यों चढ़ाया जाता है ! क्यों उनके शरीर पर सिन्दूर का लेप किया जाता है, इसकी भी एक रोचक कथा है !
बताया जाता है - लंका विजय के बाद माता सीता ने सभी बन्धु-बान्धवों को उपहार-पुरूस्कार दिए ! हनुमान जी जान-बूझकर सबसे पीछे रह गए ! जब सभी को उपहार दिए जा चुके तो वह आगे आये और सीता जी के चरणों में साष्टांग दण्डवत प्रणाम करके बोले - "माताश्री ! क्या इस पुत्र को कुछ नहीं मिलेगा ?"
सीताजी धर्मसंकट में फँस गयीं ! बोलीं-"रुको पुत्र ! मैं तुम्हारे लिए, तुम्हारे योग्य कुछ मँगवाती हूँ !"
"नहीं माते ! यदि आपके पास कुछ नहीं है तो मत दीजिये ! है तो दे दीजिये, किन्तु मुझसे प्रतीक्षा मत करवाइये ! अब और धीरज नहीं है मुझ में ? प्रतीक्षा करते हुए बहुत विलम्ब हो गया है !" हनुमान जी ने कहा !
सीताजी तो योगमाया का स्वरूप थीं ! हनुमान जी की यह व्यग्रता देख, उन्होंने अपने सभी मूल्यवान आभूषण उतारे और बोलीं - "हनुमान, तुम मेरे परमप्रिय पुत्र हो ! तुम्हें मैंने जन्म नहीं दिया तो भी तुम मेरे प्रथम पुत्र हो ! मेरे यह आभूषण अब तुम्हारे हैं ! तुम इन्हें धारण कर लो ! यह स्वयं ही तुम्हारे शरीर के अनुरूप ढल जायेंगे ! वैसे भी भविष्य में मुझे इनकी कोई आवश्यकता नहीं रहेगी !"
हनुमान जी ने माता सीता से प्राप्त सभी आभूषण धारण कर लिए ! सभी आभूषणों ने हनुमान जी के आकार के अनुसार उचित रूप धारण कर लिया ! अब सीता माता ने वात्सल्य भरी दृष्टि से हनुमान जी को देखा और बोलीं - "अब तो प्रसन्न हो न पुत्र ?"
हनुमान जी ने बुरा सा मुँह बनाकर सिर हिलाया - "नहीं माता ! आपने आशीर्वाद के रूप में अपने यह आभूषण तो दे दिए, किन्तु कोई उपहार तो दिया ही नहीं !"
अब तो सीता जी और भी अधिक धर्मसंकट में पड़ गयीं ! पर माँ तो माँ ही होती है ! पुत्र की रग-रग को माँ से बेहतर भला और कौन जानेगा !
उन्होंने एक पल कुछ सोचा ! फिर अपने माथे के सिन्दूर पर अँगुली लगाई और सिन्दूर छुई अँगुली पहले हनुमान जी के मस्तक पर छुआई ! फिर उनके पेट पर लगाई और बोलीं -"पुत्र !
अब मेरे पास मेरे सिन्दूर से अधिक मूल्यवान कुछ भी नहीं है ! मैं इसी सिन्दूर का लेप तुम्हारे बदन पर करती हूँ ! आज से तुम अज़र अमर रहोगे और तुम्हारा सम्पूर्ण शरीर सिन्दूरी होगा !
जो भी तुम्हारी पूजा करते हुए तुम्हें सिन्दूर का लेप लगायेगा ! उसे रोग-शोक-कष्टों से मुक्ति मिलेगी और वह सदैव मनचाहा फल पायेगा !"
और माता सीता द्वारा हनुमान जी के शरीर पर, अँगुली से सिन्दूरी स्पर्श करते ही, उनका सारा शरीर सिन्दूरी हो गया ! और उनके शरीर से सूर्य सरीखा तेज प्रकट होने लगा !
हनुमान जी माता सीता से यह उपहार पाते ही प्रसन्न हो गए और फिर से साष्टांग दण्डवत कर माता सीता को प्रणाम किया !
कहते हैं - तभी से हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए उनके शरीर पर सिन्दूर से लेप किया जाता है ! यह भी माना जाता है कि हनुमान जी आज भी धरती के किसी कोने में सदेह उपस्थित हैं !
और चाहे प्रलय हो या सृष्टि का विनाश हो जाये, अज़र अमर हनुमान जी हमेशा कहीं न कहीं उपस्थित रहेंगे !