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क्यों नहीं देखें - चतुर्थी का चाँद ?

गणेश चतुर्थी पर तथा गणेशजी की प्रतिमा की स्थापना के समय चन्द्रमा के दर्शन ना करें।
क्यों नहीं देखें - चतुर्थी का चाँद ?

चतुर्थी का चाँद देखने से पाप का भागी होने और चोरी का इल्ज़ाम लगने की अनेक कहानियां हैं !
अधिकाँश पण्डित शिव पुराण की कथा सुनाते हैं, किन्तु हम जो कथा आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहे हैं, यह गणेश पुराण से है ! ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी लगभग ऐसी ही कथा है !
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के चाँद को देखना महाअशुभकारी है !

कथा -

कैलाश पर उस दिन भगवान शिव के सान्निध्य सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा भी उपस्थित थे, जब अचानक ही देवर्षि नारद वहां पधारे !
नारद जी के हाथ में एक अत्यन्त सुन्दर, स्वादिष्ट, अलौकिक फल था ! नारद जी ने परमपिता ब्रह्मा तथा महादेव शिव को प्रणाम किया और फिर वह अद्भुत फल भगवान शिव के चरणों में अर्पित कर दिया !
उस समय महादेव शिव के निकट कुमार कार्तिकेय तथा श्रीगणेश दोनों उपस्थित थे ! श्रीगणेश तथा कुमार कार्तिकेय दोनों ही भगवान शिव से वह फल माँगने लगे ! शिवजी धर्मसंकट में पड़ गये ! उन्होंने ब्रह्मा जी से पूछा - "ब्रह्मा जी ! देवर्षि नारद ने मुझे यह एक ही दिव्य फल दिया है ! किन्तु गणेश और कुमार कार्तिकेय दोनों ही यह फल माँग रहे हैं ! अब आप ही बताएं कि यह फल किसे दिया जाए !"

ब्रह्मा जी बोले - "छोटे होने के कारण यह दिव्य फल तो कुमार कार्तिकेय को ही मिलना चाहिए !"( (यह कथा "गणेश पुराण" से है ! गणेश पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में कुमार कार्तिकेय को छोटा भाई दर्शाया गया है, जबकि शिव पुराण में कुमार कार्तिकेय को बड़ा तथा श्रीगणेश को छोटा दिखाया गया है ! शिव पुराण बहुत अधिक पढ़ा जाता रहा है, इसलिए अधिसंख्य श्रद्धालुजन इस कथा से अनभिज्ञ हो सकते हैं !)

ब्रह्मा जी के कहने पर भगवान शिव ने वह फल कुमार कार्तिकेय को दे दिया, किन्तु श्रीगणेश जी को ब्रह्मा जी की यह सलाह पक्षपातपूर्ण लगी ! ब्रह्मा जी फल आधा-आधा बाँटने को भी तो कह सकते थे, किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया ! भगवान शिव ने तो ब्रह्मा जी से परामर्श माँग लिया था, इसलिए सृष्टा की सलाह की अवहेलना, उनका अपमान होता, इसलिए महादेव शिव ने ब्रह्मा जी की सलाह मानकर फल कार्तिकेय को दे दिया था!

विघ्नेश्वर बुद्धिदाता श्रीगणेश ब्रह्मा जी से क्षुब्ध हो गये !

ब्रह्मलोक पहुँच कर सृष्टिसृष्टा ब्रह्मा जब सृष्टि रचने लगे तो उनसे निरन्तर कोई न कोई भूल होने लगी ! जब सृष्टा ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना में पड़ने वाले विघ्न का कारण जानने के लिए ध्यान किया तो विघ्नेश्वर श्रीगणेश अत्यन्त भयंकर रूप में ब्रह्माजी के सामने उपस्थित हो गये !
ब्रह्मा जी भयभीत हो उठे और हाथ जोड़ विघ्नेश्वर श्रीगणेश की वन्दना करने लगे ! उस समय चन्द्रमा भी उधर से ही निकल रहे थे! वह विघ्नेश्वर विनायक श्रीगणेश का रौद्र रूप तथा ब्रह्मा जी की दयनीय दशा देखकर, ठहाका मारकर हँस पड़े ! चन्द्रमा की असमय हँसी ने क्षमाशील श्रीगणेश को और कुपित कर दिया! गजानन श्रीगणेश ने क्रोधित होकर चन्द्रमा को शाप दिया - "आज से तुम्हें कोई नहीं देख सकेगा और यदि कोई देखेगा तो पाप का भागीदार होगा !"

चन्द्रमा का चेहरा मलीन पड़ गया ! उस दिन से लोगों को चन्द्रमा दिखाई देना बन्द हो गया ! चन्द्रमा के ना दिखने से देवताओं में भी खलबली मच गयी ! इन्द्र सहित सभी देवगणों ने चन्द्रमा के शाप के बारे में जाना तो सब के सब गजानन गणेश की आराधना करने लगे ! अन्ततः दयामय श्रीगणेश प्रकट हुए और बोले -"देवगणों ! मैं तुम सबकी भक्ति और आराधना से अत्यन्त प्रसन्न हूँ ! वर माँगो !"

सभी देवगणों की ओर से देवराज इन्द्र बोले - हे महाप्रभु ! चन्द्रमा पर दया करें !”
"प्रभु ! चन्द्रमा अदर्शनीय हो गया है ! उसे फिर से सौन्दर्य प्रदान करें !" अग्निदेव ने भी श्रीगणेश से विनती की !
सभी देवता गणेश वन्दना करने लगे !
श्रीगणेश सभी देवताओं की प्रार्थना सुनकर शान्त स्वर में बोले -"देवगणों ! मेरे शब्द असत्य नहीं हो सकते ! चन्द्रमा अदर्शनीय तो रहेगा ! किन्तु उसका सौन्दर्य पहले जैसा ही रहेगा ! मैंने उसका सौन्दर्य नष्ट होने का शाप नहीं दिया है ! किन्तु अदर्शनीय तो वह रहेगा ! यह अवधि पूरे वर्ष की हो या छह माह की अथवा तीन माह की ! इस पर विचार किया जा सकता है !"

सभी देवता गजानन श्रीगणेश के चरणों में गिर पड़े ! सबकी तरफ से देवराज इन्द्र बोले- "प्रभु, चन्द्र अपनी मूर्खता पर बेहद लज्जित है ! उसका अपराध क्षमा करें !" तब श्रीगणेश ने कहा - "ठीक है, चन्द्रमा का सौन्दर्य यथावत रहेगा ! वह दर्शनीय भी होगा, किन्तु वर्ष के एक दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को जाने-अनजाने जो भी चन्द्रमा के दर्शन करेगा, उसे रोग, शोक, दुःख, अपराध तथा बहुत सी दुर्घटनाओं अथवा कलंक का सामना करना पडेगा ! उसे दुखदायी कष्ट भी झेलने होंगे !"

श्रीगणेश के वचन सुन, सभी देवगण प्रसन्न हुए और सभी देवगण लज्जित एवं मलीन मुख चन्द्रमा के निकट पहुंचे ! देवराज इन्द्र ने चन्द्रमा से कहा- "कभी किसी पर भी उपहास उड़ाते हुए अथवा किसी भी कारण से हँसना नहीं चाहिए ! तुमने तो महाप्रभु विघ्नविनाशक गजानन श्रीगणेश पर हँसकर जो भयंकर भूल की थी, प्रभु ने उसका दण्ड बहुत सीमित कर दिया है ! प्रसन्नता की बात है कि अब तुम अदृश्य नहीं रहोगे ! दर्शनीय रहोगे, किन्तु वर्ष में एक दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को तुम्हें देखने वाला घोर कष्ट उठाएगा ! अब तुम महाप्रभु श्रीगणेश से को प्रणाम कर, उनसे अपने अपराध के लिए क्षमा याचना करो !"

यह कहकर देवराज इन्द्र ने चन्द्रमा को गजानन श्रीगणेश के एकाक्षरी मन्त्र का ज्ञान दिया ! (गं, ग्लौं और गौं श्रीगणेश को प्रसन्न करने के एकाक्षरी मन्त्र हैं !)
चन्द्रमा ने मंत्रोच्चारण कर श्रीगणेश को प्रणाम कर, उन्हें प्रसन्न किया !
किन्तु तब से ही भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा के दर्शन करना अशुभ माना जाता है!