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महामृत्युंजय मन्त्र भगवान शिव की आराधना का सबसे बड़ा मन्त्र है !
यह यजुर्वेद के रूद्र अध्याय का एक मन्त्र है !
इसमें भगवान शिव की स्तुति की गयी है !
देवताओं तथा दानवों द्वारा समुद्र मंथन में क्षीर सागर से सबसे पहले कालकूट हलाहल विष निकला था !
उसका असर इतना तीव्र था की सभी देवता-दानव त्राहिमाम त्राहिमाम (रक्षा करो ! रक्षा करो !) करने लगे !
तब भगवान शिव उस विष को हथेली पर रख कर पी गये, किन्तु शिवजी ने उसे कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया !
उस कालकूट विष के प्रभाव से शिव का कण्ठ नीला पड़ गया !
तभी से देवाधिदेव भगवान शिव को 'नीलकण्ठ' कहा जाने लगा।
भगवान शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' देव - महादेव कहते हैं !
महामृत्युंजय मन्त्र भगवान शिव की उपासना का मन्त्र है ! यह इस प्रकार है -
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् !
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् !!
Om Tryambakam Yajaamahe Sugandhim Pushtivardhanam !
Urvaarukmiv Bandhnaan Mrityomuksheey Maamrtaat !!
इसे मृत्यु पर विजय पाने वाला महा मृत्युंजय मन्त्र कहा जाता है। इस मन्त्र के कई नाम और रूप हैं।
इसे शिव के उग्र पहलू की ओर संकेत करते हुए रुद्र मन्त्र कहा जाता है; शिव की तीन आँखों की ओर संकेत करते हुए त्र्यम्बकम् मन्त्र और इसे कभी कभी मृत-संजीवनी मन्त्र के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह कठोर तपस्या पूरी करने के बाद असुरों के गुरु शुक्राचार्य को प्रदान की गई पुनर्जीवित करने वाली विद्या संजीवनी विद्या का ही एक अंश है !
महामृत्युंजय मन्त्र के शब्दों का सरल अर्थ इस प्रकार है : -
हे प्रभु ! जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के बाद सदा-सदा के लिए बेल से मुक्त हो जाती है, उसी तरह हम भी इस इस नाशवान जगत के जन्म-मृत्यु के बंधनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं तथा शरीर को त्यागकर आप में विलीन हो जाएं तथा मोक्ष एवं मुक्ति प्राप्त करें !
महामृत्युंजय मन्त्र का लाभ और सावधानियाँ
यह मन्त्र हर प्रकार के भय से मुक्ति दिलाता है !
इसके निरन्तर जाप से रोग - कष्ट आदि से मुक्ति मिलती है !
रोग - कष्ट- दुर्घटना द्वारा मृत्यु की सम्भावना ख़त्म करता है ! निरन्तर जप करने से बुरे ग्रहों के दुष्प्रभाव को भी नष्ट किया जा सकता है !
मन्त्र का उच्चारण शुद्धता से किया जाना चाहिए तथा जाप की संख्या प्रतिदिन बराबर होनी चाहिए ! या पिछले दिन से अगले दिन अधिक मात्रा में तो जाप किया जा सकता है,
किन्तु कम संख्या में जाप नहीं होना चाहिए ! भगवान शिव की मूर्ति अथवा तस्वीर के सामने ही जाप किया जाना चाहिए !
प्रतिदिन एक ही स्थान पर बैठ कर जाप करना चाहिए !
जप करते समय आलस-जम्हाई अथवा ध्यान भंग नहीं होना चाहिए !
जप के दिनों में तन-मन और भोजन पूरी तरह पवित्र रहना चाहिए !
माँसाहारी भोजन, मदिरा तथा लहसुन-प्याज का प्रयोग ना करें !
नारी के संसर्ग से दूर रहें !
हमेशा स्नान - ध्यान करने के बाद पूर्व दिशा की ओर मुँह करके, जमीन पर बिछाये आसन पर बैठ कर ही महामृत्युंजय मन्त्र का जाप करना चाहिए !