श्री ब्रह्मवैवर्त्त पुराण के अनुसार विश्वमोहन श्रीकृष्ण ने ही अपने सम्पूर्ण तेजस्वी स्वरूप में श्रीगणेश अवतार लिया था ! और सब जानते हैं कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु का ही दिव्य अवतार थे ! परन्तु जो तुलसी विष्णु भगवान की 'प्रिय' ही नहीं "प्रिया" मानी जाती है, उसी को श्रीगणेश पूजन में वर्जित माना गया है, आखिर क्यों?
एक कथा के अनुसार धर्मात्मज की अति सुन्दर युवा कन्या तुलसी अपने लिए योग्य पति की कामना रखते हुए तीर्थ भ्रमण पर निकली हुई थी ! विभिन्न तीर्थों के भ्रमण के बाद वह गंगातट पर पहुँची !
युवा श्रीगणेश उस समय गंगातट पर तपस्या में लीन थे ! तुलसी श्रीगणेश का तेजस्वी रूप देख मोहित हो गयीं और श्रीगणेश से विवाह करने की कामना से उन्होंने श्रीगणेश का तप भंग कर दिया ! श्रीगणेश तुलसी द्वारा तप भंग किये जाने से रुष्ट हो गए ! किन्तु इस बात से अनभिज्ञ तुलसी ने श्रीगणेश से प्रणय निवेदन किया और उनसे विवाह की इच्छा प्रकट की !
श्रीगणेश ने नम्रता से तुलसी का प्रणय निवेदन अस्वीकार करते हुए कहा _"मैं ब्रह्मचारी हूँ और मेरी विवाह की कोई कामना नहीं है !"
इस पर तुलसी क्रुद्ध हो उठीं -"यदि आप ब्रह्मचारी होने के कारण मेरा प्रणय निवेदन अस्वीकार कर रहे हैं तो आप ब्रह्मचारी नहीं रहेंगे ! आपके दो-दो विवाह होंगे और आपका ब्रह्मचर्य भंग होकर रहेगा !"
तुलसी के इस प्रकार शाप देने से श्रीगणेश भी क्रुद्ध हो उठे ! उन्होंने तुलसी को शाप दिया-"तुम्हारा विवाह किसी असुर से होगा !"
असुर से विवाह का शाप पाकर तुलसी व्यथित हो उठीं और बोलीं -"यह क्या प्रभु ? मैंने तो आपसे प्रेम निवेदन किया था और आपने मुझे इतना कठोर शाप दे दिया ! मुझे क्षमा करें प्रभु !"
श्रीगणेश को तुलसी की दशा देख, उस पर दया आ गयी ! वह बोले -"देवी ! मेरे वचन असत्य नहीं हो सकते ! तुम्हारा विवाह तो किसी असुर राक्षस से ही होगा, किन्तु कालान्तर में तुम श्रीविष्णु और श्रीकृष्ण की प्रिय होगी ! और उनकी कृपा से कलियुग में तुम सारी दुनिया में पूजी जाओगी ! तुम्हारी नियमित रूप से पूजा करने वाले सभी सुखों और मोक्ष प्राप्ति के अधिकारी होंगे ! किन्तु मेरी पूजा में तुम सदैव वर्जित रहोगी ! मेरी पूजा में तुम्हें कभी नहीं चढ़ाया जाएगा !"
इसीलिये तुलसी का उपयोग श्रीगणेश पूजन में कभी नहीं किया जाता !
तुलसी के शाप के कारण ही श्रीगणेश के दो विवाह हुए ! रिद्धि और सिद्धि नामक दो कन्याओं से श्रीगणेश का विवाह हुआ !
तुलसी का भी श्रीगणेश के शाप के कारण एक असुर से विवाह हुआ ! बहुत सी कथाओं में तुलसी का विवाह शंखचूर्ण नाम के राक्षस से हुआ बताया जाता है, जबकि अनेक कथाओं में तुलसी का प्रारम्भिक नाम वृन्दा बताया जाता है और वृन्दा के रूप में श्रीगणेश के शाप के कारण उसका विवाह जलन्धर नामक राक्षस से हुआ ! बाद में विष्णु के शालिग्राम रूप में वृन्दा ही तुलसी बनकर विष्णुप्रिया बनी! और फिर समस्त विश्व में तुलसी नामक पौधे के रूप में पूज्य हो गयीं !