एक बार देवराज इन्द्र ने देवर्षि नारद से कहा – “हे मुनियों में श्रेष्ठ, सभी शास्त्रों के ज्ञाता ! कृपया मुझे व्रतों में उत्तम उस व्रत के बारे में बताएँ, जिस व्रत से मनुष्यों को मुक्ति, लाभ प्राप्त हो तथा उस व्रत से प्राणियों को भोग व मोक्ष भी प्राप्त हो जाए !“
तब नारद जी ने देवराज को भगवान् कृष्ण के जन्म से लेकर कंस वध की सम्पूर्ण कथा सुनाई ! (जन्माष्टमी त्यौहार की संक्षिप्त कथा त्यौहार कथाएँ में पढ़ें )
सम्पूर्ण कथा को सुनने के पश्चात इंद्र ने नारदजी से कहा - हे देवर्षि ! मुझे कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत करने का तरीका तथा व्रत से होने वाले लाभ के बारे में भी बताएं ! यह व्रत करने से किस प्रकार का पुण्य लाभ होता है, यह सब भी बताएं !”
तब नारद जी ने देवराज इन्द्र से कहा - " हे देवेन्द्र ! भाद्रपद मास की कृष्णजन्माष्टमी को यह व्रत करना चाहिए। व्रत के दिन ब्रह्मचर्य आदि नियमों का पालन करते हुए श्रीकृष्ण की मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए ! चंदन, धूप, पुष्प, कमलपुष्प आदि से श्रीकृष्ण की मूर्ति को सुसज्जित कर भक्तिभाव से श्रद्धापूर्वक नमन करें ! यदि सम्भव हो तो भगवान विष्णु के दस अवतार रूपों को यशोदा, नंद, बलराम, देवकी, वसुदेव, गायों, गोपिकाओं, कालिया, यमुना नदी, गोपगण और गोपपुत्रों आदि की झाँकी सजाकर भगवान् कृष्ण की पूजा करें ! पूजन की समाप्ति पर इस महत्त्वपूर्ण व्रत का उद्यापन कर्म भी करें।
जन्माष्टमी के दिन पूर्ण उपवास किया जाता है ! उपवास से पहले की रात को - भोर का प्रहर शुरू होने से पहले हल्का भोजन अवश्य कर लें ! (धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रातः चार बजे से भोर काल आरम्भ हो जाता है, इसलिए जो भी भोजन करें, सुबह चार बजे से पहले करें !)
उपवास में अन्न ग्रहण भगवान् कृष्ण के जन्म से पहले नहीं किया जाता ! भगवान् कृष्ण का जन्म रात्रि के बारह बजे हुआ था ! बारह बजते ही घण्टे-घड़ियाल बजाकर मन्दिरों में पूजा अर्चना आरम्भ हो जाती है ! जो लोग पूजा के लिए मन्दिर अथवा भगवान् श्रीकृष्ण के झाँकी स्थल में पहुंचे होते हैं, उन्हें भक्ति भाव से पूजा में सम्मिलित होकर, प्रसाद ग्रहण करने के पश्चात ही घर के लिए प्रस्थान करना चाहिए, किन्तु जो लोग घर में पूजा कर रहें हों, घर में ही श्रद्धा भाव से पूजा सम्पन्न करनी चाहिए और प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही भोजन करना चाहिए !” इस प्रकार देवर्षि नारद ने देवराज इन्द्र को व्रत के बारे में बताया !
फिर बोले - "हे देवराज ! जो भी मनुष्य जन्माष्टमी का व्रत करता है, उसे उचित समय पर धन-वैभव और सारे सुख प्राप्त होते हैं ! अन्त में उसे सभी सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति होती है ! वह प्रभु का प्रिय बन उन्हीं में विलीन हो जाता है !