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करवा चौथ व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है ! एक गाँव में करवा नाम की एक औरत रहती थी ! वह बड़ी धर्मपरायण और पतिव्रता स्त्री थी ! एक बार करवा के पति गाँव के पास ही नदी में स्नान करने के लिए गए ! तभी एक मगरमच्छ ने उनका पाँव पकड़ लिया ! करवा के पति पाँव छुड़ाने की कोशिश करते हुए बहुत जोर से चिल्लाये ! उनकी पुकार करवा के कानों तक भी पहुँची और वह दौड़ी दौड़ी नदी पर आई !

उसने पति का पाँव मगरमच्छ के मुंह में देख मगरमच्छ से विनती की कि वह उसके पति का पाँव छोड़ दे ! किन्तु मगरमच्छ ने करवा के पति के पाँव न छोड़े !

करवा ने अपनी साड़ी से ही एक कच्चा धागा निकाला और भगवान् का स्मरण कर, मगरमच्छ के मुँह पर बाँध दिया ! सती स्त्री के सतीत्व के प्रभाव से मगरमच्छ करवा के पति को निगलने में असमर्थ हो गया !

तब करवा ने यमराज का आह्वान किया ! सती पतिव्रता स्त्री कि पुकार सुन यमराज को धरती पर आना ही पड़ा !

करवा ने यमराज से कहा - "इस मगरमच्छ ने मेरे पति का पाँव पकड़ा है, इसे आप मृत्यु देकर यमलोक ले जाएँ और नरक में डाल दें !"

यमराज बोले - "मैं ऐसा नहीं कर सकता ! अभी इस मगरमच्छ कि आयु शेष है !"

करवा रुष्ट होकर बोली - आप यम हैं ! मृत्यु के देवता हैं ! यदि आप ही कुछ नहीं करेंगे तो मुझे शाप देकर आपको और इस मगरमच्छ को दण्ड देना पडेगा !"

करवा का सतीत्व इतना प्रबल था कि यमराज को विवश होकर मगरमच्छ के प्राण हरने पड़े और उसे नरक में भेजना पड़ा !

मगरमच्छ के मुँह से करवा के पति का पाँव छूट गया ! करवा ने यमराज को धन्यवाद देते हुए उन्हें प्रणाम किया और यमराज ने करवा के पति को लम्बी आयु और सुखी जीवन का वरदान दिया !

कथा पूरी होने के बाद सुहागन महिलायें हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता ! जिस प्रकार आपने अपने पति की प्राण रक्षा की, उसी प्रकार सबके पतियों की रक्षा करना !