एक नगर में एक साहूकार रहता था ! वह और उसकी पत्नी लीलावती, दोनों बड़े ही धर्मपरायण थे ! उनके सात बेटे और वीरावती नाम की एक बेटी थी ! वीरावती अपने भाइयों और भाभियों की बेहद लाडली थी ! उसकी शादी निकट गाँव के एक सुन्दर युवक से हो गयी ! शादी के बाद वीरावती जब मायके में थी, तभी करवा चौथ का व्रत पड़ा ! वीरावती ने अपनी सातों भाभियों सहित करवा चौथ का व्रत रखा ! शाम के समय वीरावती भूख-प्यास से व्याकुल हो गयी ! कमजोरी के कारण कभी-कभी उसके कदम भी लड़खड़ाने लगे!
वीरावती का यह हाल उसके भाइयों से देखा न गया ! लेकिन सभी भाई जानते थे कि वीरावती पतिव्रता नारी है, वह चन्द्रमा के दर्शन किये बिना पानी तक नहीं पीयेगी !
वीरावती के भाई घर से काफी दूर गए और एक ऊँचे पेड़ पर चढ़कर एक बड़े दीपक में ज्योति जला दी ! सबसे छोटा भाई दौड़कर घर आया और उसने बहन को बताया कि चाँद निकल आया है !
भूख प्यास से व्याकुल वीरावती ने दूर से दिख रही दीपक की रोशनी को चाँद की रोशनी ही समझा और चाँद को अपने अर्ध्य देकर जल ग्रहण कर अपने व्रत को तोड़ा ! फिर वह भोजन करने बैठी !
जैसे ही उसने पहला ग्रास तोड़ा, उसमें बाल आ गया ! वीरावती ने दूसरा ग्रास तोड़ा तो उसे छींक आ गयी ! वह तीसरा कौर तोड़ कर मुँह में देने ही जा रही थी कि उसकी ससुराल से कोई आया और उसने वीरावती को उसके पति की मृत्यु का समाचार दिया ! वीरावती बिलख उठी कि करवा चौथ के दिन यह अनर्थ क्यों हुआ ! तब उसकी भाभियों ने उसे बताया कि उसे भूख प्यास से व्याकुल देख उसके भाइयों ने उसका व्रत गलत तरीके से तुड़वा दिया ! शायद इसीलिये देवगण नाराज़ हो गए होंगे !
वीरावती ससुराल पहुँची और उसने निश्चय किया कि उसकी भूल से उसके पति के प्राण गए हैं तो वह उन्हें अपने सतीत्व और तप बल से पुनर्जीवित करवा कर रहेगी ! अपने पति के मृत शरीर के सम्मुख बैठ वह विलाप करने लगी और सती देवियों का आह्वान करने लगी ! वीरावती का विलाप सुन इन्द्र देवता की पत्नी इन्द्राणी प्रकट हुईं और बोलीं कि तुमने चन्द्रमा को अर्ध्य अर्पण किये बिना व्रत तोड़ा था तो तुम्हें पूरे साल हर चौथ का व्रत करना पड़ेगा ! अगले वर्ष जब तुम पूरे धार्मिक कृत्यों के साथ करवा चौथ का व्रत करोगी, तब तुम्हारा पति फिर से जीवित हो उठेगा ! तब तक तुम्हारे पति का शरीर तुम्हारे सतीत्व और सत्य-तप बल से सुरक्षित रहेगा !
वीरावती ने पूरे साल हर चौथ का व्रत किया ! फिर अगले वर्ष करवा चौथ का व्रत समस्त धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ किया और अन्त में चन्द्रमा को अर्ध्य देने के बाद उसने अपने पति से विनती की कि वह उठें और उसे पानी पिला कर व्रत पूर्ण करें तो वीरावती का पति उठ बैठा, जैसे सोते से उठा हो ! उसने वीरावती को जल पिलाया ! इस प्रकार वीरावती ने भी अपने पति को फिर से प्राप्त किया !
कथा पूरी होने के बाद सुहागन महिलायें हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता ! जिस प्रकार आपने और वीरावती ने अपने पति की प्राण रक्षा की, उसी प्रकार सबके पतियों की रक्षा करना !