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अहोई अष्टमी का व्रत

करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का पर्व मनाया जाता है ! यह व्रत माताएँ अपनी सन्तान के सुख के लिए रखती हैं ! पहले यह व्रत केवल पुत्रवती माताएँ अपने पुत्र/पुत्रों के सुखी जीवन की कामना करते हुए रखती थीं ! परन्तु आज के समय से बहुत सी ऐसी महिलायें, जिनके पुत्र नहीं हैं और वे अपनी पुत्रियों को ही पुत्रवत मानती हैं, अपनी पुत्रियों के लिए भी व्रत रखने लगी हैं ! पहले यह व्रत करने के लिए महिलायें दीवार पर अथवा जमीन पर गाय के गोबर तथा रोली से चित्र बनाती थीं ! किन्तु अब अहोई अथवा होई अष्टमी या होई आठें के रंगीन प्रिन्टेड कैलेन्डर बाज़ार में मिल जाते हैं, जिन्हें दीवार पर कील ठोंक कर टांग दिया जाता है अथवा फेविकॉल या टेप से दीवार पर चिपका दिया जाता है !

अहोई अष्टमी के दिन माताएँ पक्का खाना बनाती हैं ! पूरी -सब्जी- हलवा -खीर आदि ! बहुत से परिवारों में गुड़ के मीठे गुलगुले बनाये जाते हैं ! पूजा के समय पुत्रवती माताएँ अपने पुत्र/पुत्रों को पूजा में बैठाती हैं और पूजा के बाद गुलगुलों का प्रसाद देती हैं !
अहोई अष्टमी के दिन पुत्रवती माताएँ सुबह उठकर स्नान के बाद एक मिट्टी के बर्तन में पानी रखकर अहोई माता का ध्यान करती हैं ! उसके बाद पूरे दिन व्रत रखती हैं और सन्ध्या के बाद अहोई माता की कथा सुनकर पूजा करने के बाद तारों को अर्ध्य देती हैं ! बहुत से परिवारों में चन्द्रमा को अर्ध्य दिए जाने की भी परंपरा है ! फिर अपने पुत्र को प्रसाद खिलाने के बाद उसी के हाथों जल पीकर व्रत भंग करती हैं ! जिन माताओं के पुत्र किसी कारणवश उनसे दूर रहते हों, वह उनके नाम का प्रसाद भगवान के नाम से अलग कर अपने प्यारे किसी भी बच्चे या बच्ची को खिला देती हैं ! फिर अपना व्रत तोड़ती हैं !

भिन्न-भिन्न परिवारों में अपने परिवार की परम्पराओं के अनुसार व्रत और पूजा की जाती है, किन्तु उन में बहुत ज्यादा अन्तर नहीं होता !
अहोई अष्टमी की कई व्रत कथाएँ कही जाती हैं, पर सभी कथानक मिलते-जुलते ही हैं !
हम दो मुख्य कथाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं !

अहोई अष्टमी व्रत कथा-1

अहोई अष्टमी व्रत कथा -2

श्री अहोई माता जी की आरती