गणेश चतुर्थी की अनेक कथाएँ पढ़ी और सुनी जाती हैं ! उन में से एक हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं ! शीघ्र ही श्रीगणेश जी की अन्य कथाएँ भी सरल भाषा में आप के लिए प्रस्तुत की जाएंगी !
गणेश चतुर्थी की कथा
एक बार पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक बहुत सुन्दर पुतला बनाया ! फिर उस में प्राण फूँक दिए ! जीवन पाते ही उस सुन्दर बालक ने माँ पार्वती के चरण छूकर प्रणाम किया !
माता पार्वती ने बालक को आशीर्वाद देकर विद्या- बुद्धि प्रदान की और गणेश का नाम दिया ! फिर उस के हाथ में एक मुगदर थमाकर कहा- "पुत्र गणेश, मैं स्नान करने जा रही हूँ ! तुम द्वार पर खड़े हो जाओ और किसी को अन्दर मत आने देना !"
"जो आज्ञा माता !" मुगदर थामकर गणेश जी बाहर पहरा देने चले गए ! गणेश जी बहुत देर तक पहरा देते रहे ! भोजन के समय भगवान शिव वहां आये तो बालक गणेश ने उन्हें रोक दिया ! शिवजी ने बालक गणेश को समझाना चाहा, किन्तु गणेश के लिए तो माँ की आज्ञा ही सबसे बढ़कर थी ! उन्होंने महादेव शिव को रोकते हुए हवा में मुगदर उठा लिया ! एक अपरिचित बालक द्वारा इस तरह रोके जाने से शिव जी क्रुद्ध हो उठे और बालक का सिर धड़ से अलग कर अन्दर चले गए !
तब भोजन का समय हो चुका था, इसलिए माता पार्वती ने महादेव शिव को बैठने के लिए आसन दिया और दो थालों में भोजन परोसने लगीं !
माता पार्वती अपने प्रभु को खिलाये बिना अन्न ग्रहण नहीं करती थीं, इसलिए दूसरा थाल देखकर भोले भण्डारी शिव जी चौंक गए और पूछा - "देवी ! यह दूसरा थाल किसके लिए है?"
तब पार्वती जी ने कहा - "यह मेरे पुत्र गणेश के लिए है!” और माता पार्वती ने गणेश जी की रचना उन्होंने क्यों और कैसे की, सब कुछ भगवान शिव को बताया !
सब कुछ जानकर शिव जी चकित हो उठे और दुखी होकर बोले -"बाहर तुम्हारा पुत्र पहरा दे रहा था,किन्तु मैंने तो उसके बारे में स्वयं कुछ भी जाने बिना ही - उसे कोई दुष्ट बालक समझ, उसका सिर धड़ से अलग कर दिया!"
पार्वती जी दुखी होकर विलाप करने लगीं ! अन्तर्यामी भगवान शिव तुरन्त ही अंतर्ध्यान हो गए और फिर निकट के वन में खेल रहे एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर लाये तथा श्रीगणेश जी के धड़ से जोड़कर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया !
श्रीगणेश जी को यह अलौकिक रूप जिस दिन मिला था - वह भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन था ! इसी दिन वास्तविक रूप में श्रीगणेश का अवतार हुआ था, इसलिए भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन गणेश चतुर्थी का पर्व गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है!
यह त्यौहार चतुर्थी से शुरू होकर चतुर्दशी तक मनाया जाता है ! गणेश चतुर्थी के दिन भक्त एवं श्रद्धालुजन अपने घर श्री गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करते हैं तथा त्रयोदशी तक रोज धूमधाम से गणेश जी की पूजा-वन्दना करते हैं ! चतुर्दशी को गणेश प्रतिमा का विसर्जन बड़ी धूमधाम से किया जाता है !
इसके पीछे यह मान्यता भी है कि गणेश जी के पुनर्जन्म अवतार के जन्मोत्सव को माता पार्वती ने भी बड़ी धूम-धाम से मनाया और दस दिन तक सभी देवी-देवता उन्हें आशीर्वाद तथा अपनी शक्तियाँ प्रदान करने के लिए आते रहे थे!
इन दस दिनों तक श्री गणेश जी की पूजा-अर्चना करने वाले हर भक्त पर ब्रह्मा-विष्णु-महेश तथा माता पार्वती, लक्ष्मी माँ और सरस्वती माता सहित इन्द्र और सभी देवी-देवता कृपालु रहते हैं !
गणेश चतुर्थी पर तथा गणेशजी की प्रतिमा की स्थापना के समय चन्द्रमा के दर्शन ना करें।
क्यों नहीं देखें - चतुर्थी का चाँद ?