निर्बल के प्राण पुकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे ! साँसों के स्वर झंकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे ! आकाश हिमालय सागर में, पृथ्वी पाताल चराचर में ! ये मधुर बोल गुन्जार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे ! निर्बल के प्राण पुकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे ! साँसों के स्वर झंकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे ! जब दया दृष्टि हो जाती है, सूखी खेती हरियाती है ! इस आस पे जन उच्चार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे ! निर्बल के प्राण पुकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे ! साँसों के स्वर झंकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे ! तुम हो करुणा के धाम सदा, सेवक हैं राधेश्याम सदा ! बस, मन में यही विश्वास रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे !! निर्बल के प्राण पुकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे ! साँसों के स्वर झंकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे !