एक व्यक्ति बहुत नास्तिक था ! उसको भगवान पर विश्वास नहीं था ! एक बार उसके साथ दुर्घटना
घटित हुई !
वह घायल अवस्था में रोड पर पड़ा- पड़ा सब की ओर कातर निगाहों से मदद के लिए देख रहा था, पर कलियुग का इन्सान किसी इन्सान की मदद जल्दी नहीं करता, मालूम नहीं क्यों ?
कोई उसकी मदद को नहीं आया और वह तड़पता रहा ! शायद वह बिना किसी की मदद के तड़प-तड़प कर मर जाएगा ! वह यही सब कुछ सोच-सोच कर थक गया !
तभी उसके नास्तिक मन ने अनमने से प्रभु को गुहार लगाई –“ "हे भगवान् ! मुझे बचा लो !”
उसी समय एक ठेलेवाला वहाँ से गुजरा ! उस नास्तिक को घायल अवस्था में देखा तो लपक कर आगे आया और उसे गोद में उठाया और फिर चिकित्सा के लिए शीघ्र ही निकटतम सरकारी अस्पताल में ले गया !
उसने उनके परिवार वालों को फ़ोन भी किया और अस्पताल बुलाया सभी आये उस ठेलेवाले व्यक्ति को
बहुत धन्यवाद दिया ! उसके घर का पता भी लिखवा लिया ! और यह कहा कि जब यह ठीक हो जायेगा तो आप से मिलने आयेंगे !
वो मन के नास्तिक सज्जन ठीक हो गए तो कुछ दिन बाद वो अपने परिवार के साथ उस व्यक्ति से
मिलने का इरादा बनाते है और निकल पड़ते है मिलने |
उस व्यक्ति ने अपना नाम बाँके बिहारी बताया था !
वो बाँके बिहारी का नाम पूछते हुए उस पते पर जाते है तो उनको वहाँ पर प्रभु का मन्दिर मिलता है,
वो अचंभित से उस भवन को देखते है, और उसके अन्दर चले जाते जाते है !
अभी भी वहाँ पर पुजारी से नाम लेकर पूछते है कि यह बाँके बिहारी कहाँ मिलेगा !
पुजारी हाथ जोड़ मूर्ति की ओर इशारा कर के कहता है कि यहाँ यही एक बाँके बिहारी है !
खैर वो मंदिर से लौटने लगते है तो उनकी निगाह एक बोर्ड पर पड़ती है उसमे एक वाक्य लिखा
दिखता है कि "इंसान ही इंसान के काम आता है, उस से प्रेम करते रहो, मैं तो तुम्हे स्वयं मिल जाऊंगा !
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